सावित्री बाई फुले

सावित्री बाई फुले

सावित्री बाई फुले 

संदर्भ- प्रत्येक वर्ष 03/01/2022 को सावित्री बाई फुले की जयंती मनाई जाती है, सावित्री बाई का जीवन स्त्री शिक्षा व समाज सेवा के लिए समर्पित रहा है, अतः उनकी जयंती पर सावित्री बाई फुले के जीवन के संघर्षों को जानना आवश्यक है।

सावित्री बाई फुले

  • 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के नायगाँव में दलित माली परिवार में सावित्रीबाई फुले का जन्म हुआ था।
  • मात्र 10 वर्ष की आयु में इनका विवाह ज्योतिराव फुल से हो गया, ज्योतिराव फुले ने उन्हें घर पर ही शिित कराया।
  • प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त कर उन्होंने नागपुर के शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान से प्रशिक्षण प्राप्त किया।
  • बाल विवाह व सती प्रथा जैसे सामाजिक अन्याय के खिलाफ लोगों को जागरुक किया।

संघर्ष-

बालिका विद्यालय – 

  • सावित्री बाई फुले ने पति ज्योतिबा फुले व फातिमा शेख के साथ मिलकर पुणे के भिड़ेवाड़ा में भारत का पहला बालिका स्कूल 1848 में उस्मान शेख के घर में खोला गया था।
  • स्थापना के समय स्कूल में सिर्फ 9 लड़कियाँ थी।
  • स्कूल में पारंपरिक शिक्षा जैसे वेद पुराण से इतर गणित, विज्ञान व सामाजिक अध्ययन जैसे विषय पढ़ाए जाते थे।
  •  सावित्री बाई घर घर जाकर लड़कियों को स्कूल में शिक्षा हेतु भेजने के लिए प्रोत्साहित करती थी, उनकी साथी फातिमा शेख ने भी कई भाषाओं को सीख कर शिक्षिका व सामाजिक सुधारक के रूप में उनका साथ दिया। 
  • ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर उन्होंने 18 स्कूलों की स्थापना की। जिसमें बच्चों को वजीफा भी दिया जाता था जिससे वे आसानी से शिक्षा प्राप्त कर सकें।
  • द पूना ऑब्जर्वर की 1852 की एक रिपोर्ट में कहा गया है, “ज्योतिराव के स्कूल में लड़कियों की संख्या सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले लड़कों की संख्या से दस गुना अधिक है।

सामाजिक बहिष्कार

  • इस स्कूल को सर्वप्रथम जातिगत धर्म, जाति से संबंधित भेदभाव का सामना करना पड़ा।
  • विद्यालय जाने वाली शिक्षिकाओं, छात्राओं व उनके परिवारों का घोर विरोध हुआ, जिसका एक उदाहरण काशीबाई प्रसंग है।
  • घर से बाहर निकलते ही गोबर, कीचड़ फेंककर सावित्री बाई को अपमानित किया जाता था।
  • विद्यालय खोलने व सामाजिक सुधार की गतिविधियों में भाग लेने के कारण ज्योतिबा फुले व सावित्री बाई फुले को परिवार सहित सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा।

महिला मंडल का गठन- 1842 में महिला मंढल का गठन कर महिलाओं को जागरक किया गया। महिलाओं को संगठित कर अत्याचार जैसे विधवाओं के जीवन को कठिन बनाने, उनके बाल काटने, शारीरिक शोषण, सती प्रथा के खिलाफ लोगों को जागरुक करने का कार्य किया। विधवाओं के बाल न काटने के लिए नाइयों से अनुरोध कर समर्थन प्राप्त किया। 

बाल हत्या प्रतिबंधक गृह –  1852 में फुले दम्पति ने बाल हत्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए बाल हत्या प्रतिबंधक गृह की शुरुआत की। इसमें विधवा मांओं को शरण देकर उनकी देखभाल की जाती थी। फुले दम्पति ने एक विधवा को आत्महत्या करने से बचाकर उसके बच्चे को गोद लिया।

सत्यशोधक समाज- ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर 24 सितंबर 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की। इसका उद्देश्य शूद्र व अस्पृश्य जाति को सामाजिक भेदभाव से विमुक्त करना था। इसके माध्यम से सामूहिक विवाह न्यूनतम खर्च पर कराए गए। 1875-77 में महाराष्ट्र के भीषण अकाल के समय अकाल पीड़ितों की मदद के लिए सरकार पर दबाव डालकर अकाल पीड़ित केंद्र बनवाए गए।

अंतिम समय- 28 नवंबर, 1890 को अपने पति के अंतिम संस्कार के जुलूस में, सावित्रीबाई ने फिर से परंपरा को तोड़ दिया और तितवे (मिट्टी का बर्तन) ले गईं। जुलूस के आगे चलकर, सावित्रीबाई ने पति के शरीर को मुखाग्नि दी, यह अनुष्ठान आज भी मुख्य रूप से पुरुषों द्वारा किया जाता है। 1896 के अकाल व 1897 में प्लेग के समय लगातार राहत कार्य करते करते, प्लेग से 10 मार्च 1897 को उनकी मृत्यु हो गई।

सावित्री बाई फुले : एक कवयित्री

  • समाज सुधारक, शिक्षिका के अतिरिक्त सावित्री बाई फुले एक कवयित्री भी थी। 
  • उनका काव्यफुले नामक संग्रह मार्मिक कविताओं के लिए प्रसिद्ध है। यह 1854 में प्रखाशित हुआ था।
  • उनका दूसरा कविता संग्रह बाबन्न कशी सुबोध रत्नाकर(शुद्ध रत्नों का महासागर), 1891 में ज्योतिबा फुले को स्मृति में प्रकाशित किया गया था।
  • सावित्री बाई की प्रमुख कविताएं- अंग्रेजी पढ़ो, बालक को उपदेश, श्रेष्ठ धन धौलत, संत, गो गैट एजुकेशन आदि प्रसिद्ध हैं। जिसमें वे कर्म करने व भेदभाव मिटाने पर जोर दे रही हैं।

स्रोत 

इण्डियन एक्सप्रैस

media vigil

oxfamindia.org

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