अध्यादेश

अध्यादेश

संदर्भ में-

  • हाल ही में, केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश के ज़रिये सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया है। जिसमें आदेश में कहा गया था कि निर्वाचित दिल्ली सरकार के पास पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि से संबंधित सेवाओं को छोड़कर बाकी सभी दूसरे मसलों पर उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह माननी होगी।

विवाद-

  • सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच विवाद की सुनवाई कर रही थी जिसमें 11 मई को कहा कि दिल्ली सरकार कानून बना सकती है और राष्ट्रीय राजधानी में सिविल सेवाओं का प्रशासन कर सकती है।
  • अदालत ने राजधानी में नौकरशाहों पर उपराज्यपाल (एलजी) की भूमिका को तीन विशिष्ट क्षेत्रों – सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि तक सीमित कर दिया।
  • केंद्र सरकार द्वारा इस फैसले के विरोध में 19 मई को एक अध्यादेश “राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश, 2023” लाया गया

अध्यादेश क्या है?

  • संविधान के तहत, कानून बनाने की शक्ति विधायिका के पास है। हालांकि, ऐसे मामलों में जब संसद का सत्र नहीं चल रहा है, और ‘तत्काल कार्रवाई’ की आवश्यकता है, राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकते हैं।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत देश के राष्ट्रपति को संसद के सत्रावसान की अवधि में अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई है और इन अध्यादेशों का प्रभाव व शक्तियां संसद द्वारा बनाए गए कानूनों के बराबर ही होती हैं परंतु ये अल्पकालिक होती हैं।

अध्यादेश पर राष्ट्रपति की शक्ति-

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर राष्ट्रपति के पास अध्यादेश जारी करने का अधिकार है। ये अध्यादेश संसद से पारित कानून जितने ही शक्तिशाली होते हैं।
  • जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, राष्ट्रपति की यह शक्ति कुछ सीमाओं के अधीन है। वो हैं –अध्यादेश बनाने की शक्ति राष्ट्रपति को तभी उपलब्ध होती है जब संसद का कोई भी सदन सत्र में न हो।
  • अनुच्छेद 123(1) के अनुसार, राष्ट्रपति तभी अध्यादेश जारी कर सकता है जब वह संतुष्ट हो कि ऐसी परिस्थितियां मौजूद हैं जिसके कारण उसके लिए तत्काल कार्रवाई करना आवश्यक हो गया है।
  • अधिनियमित अध्यादेश को भारतीय संविधान में निहित किसी भी मौलिक अधिकार को कम या कम नहीं करना चाहिए।
  • अनुच्छेद 123(2)(A) के अनुसार, संसद के अवकाश के दौरान पेश किए गए प्रत्येक अध्यादेश को संसद के दोनों सदनों के फिर से समवेत होने पर उसके समक्ष रखा जाना चाहिए। यह लेख दो परिस्थितियों को भी बताता है जहां अध्यादेश अप्रभावी हो जाएगा।
  • यदि अध्यादेश को संसद द्वारा अनुमोदित नहीं किया जाता है, तो यह संसद की पुन: बैठक से 6 सप्ताह की समाप्ति पर काम करना बंद कर देगा।
  • यदि अध्यादेश छह सप्ताह की समाप्ति से पहले संसद द्वारा अस्वीकृत कर दिया जाता है, तो अध्यादेश अप्रभावी हो जाएगा।

अध्यादेश को वापस लेना-

  • सरकार को अनुमोदन के लिए संसद के समक्ष एक अध्यादेश लाने की आवश्यकता है – और ऐसा करने में विफलता “संसद की पुनर्संरचना से छह सप्ताह की समाप्ति पर” इसे समाप्त कर देगी।
  • अध्यादेश पहले ही समाप्त हो सकता है यदि राष्ट्रपति इसे वापस ले लेते हैं – या यदि दोनों सदन इसे अस्वीकार करते हुए प्रस्ताव पारित करते हैं। (अध्यादेश को अस्वीकार करने का मतलब यह होगा कि सरकार ने बहुमत खो दिया है।
  • यदि दोनों सदनों द्वारा अध्यादेश को अस्वीकार करने वाले प्रस्ताव पारित किए जाते हैं तो अध्यादेश भी काम करना बंद कर देगा।
  • इसके अलावा, यदि कोई अध्यादेश एक कानून बनाता है जिसे संसद संविधान के तहत अधिनियमित करने के लिए सक्षम नहीं है, तो इसे शून्य माना जाएगा।

अध्यादेश लाने की राज्यपाल की शक्तियां-

  • जिस तरह भारत के राष्ट्रपति को अनुच्छेद 123 के तहत अध्यादेश जारी करने के लिए संवैधानिक रूप से अनिवार्य किया गया है, उसी तरह किसी राज्य का राज्यपाल अनुच्छेद 213 के तहत अध्यादेश जारी कर सकता है, जब राज्य विधानसभा (या द्विसदनीय विधायिका वाले राज्यों में दोनों सदनों में से कोई एक) सत्र में नहीं है।
  • राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियां मोटे तौर पर अध्यादेश बनाने के संबंध में तुलनीय हैं।
  • हालांकि, राज्यपाल उन मामलों में राष्ट्रपति के निर्देशों के बिना अध्यादेश जारी नहीं कर सकता है जहां इसी तरह के विधेयक को पारित करने के लिए राष्ट्रपति की सहमति की आवश्यकता होती है।

अध्यादेश के प्रयोग की सीमाएं-

  • राष्ट्रपति उन्हीं विषयों के संबंध में अध्यादेश जारी कर सकता है जिन विषयों पर संसद को विधि बनाने की शक्ति प्राप्त है।
  • अध्यादेश उस समय भी जारी किया जा सकता है जब संसद में केवल एक सदन का सत्र चल रहा हो क्योंकि विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाना होता है। हालांकि जब संसद के दोनों सदनों का सत्र चल रहा हो तो उस समय जारी किया गया अध्यादेश अमान्य माना जाएगा।
  • अध्यादेश के द्वारा नागरिकों के मूल अधिकारों का अतिक्रमण नहीं किया जा सकता है क्योंकि अनुच्छेद 13(क) के अधीन विधि शब्द के अंतर्गत ‘अध्यादेश’ भी शामिल है।
  • राष्ट्रपति के द्वारा जारी किए गए अध्यादेश को संसद के पुनः सत्र में आने के 6 सप्ताह के अन्दर संसद के दोनों सदनों का अनुमोदन मिलना जरूरी है अन्यथा 6 सप्ताह की अवधि बीत जाने पर अध्यादेश प्रभावहीन हो जाएगा।
  • राष्ट्रपति के द्वारा जारी किए गए अध्यादेश को अस्पष्टता, मनमाना प्रयोग, युक्तियुक्त और जनहित के आधार पर चुनौती दी जा सकती है।
  • राष्ट्रपति द्वारा जारी किए गए अध्यादेश को उसके द्वारा किसी भी समय वापस लिया जा सकता है।
  • राष्ट्रपति के द्वारा अध्यादेश उस परिस्थिति में भी जारी किया जा सकता है जब सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा किसी विधि को अविधिमान्य घोषित कर दिया गया हो और उस विषय में कानून बनाना जरूरी हो।
  • संसद सत्रावसान की अवधि में जारी किया गया अध्यादेश संसद की अगली बैठक होने पर दोनों सदनों के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए। यदि संसद इस पर कोई कार्रवाई नहीं करती है तो संसद की दुबारा बैठक के 6 हफ्ते पश्चात अध्यादेश समाप्त हो जाता है। अगर संसद के दोनों सदन इसका निरामोदन कर दे तो यह 6 हफ्ते से पहले भी समाप्त हो सकता है। यदि संसद के दोनों सदनों को अलग-अलग तिथि में बैठक के लिए बुलाया जाता है तो ये 6 सप्ताह बाद वाली तिथि से गिने जाएंगे।

अध्यादेशों पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:

  • कार्यपालिका की अध्यादेश बनाने की शक्ति के संबंध में निम्नलिखित सीमाएं मौजूद हैं:

आरसी कूपर बनाम भारत संघ (1970):

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति के फैसले को इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि ‘तत्काल कार्रवाई’ की आवश्यकता नहीं थी, और अध्यादेश मुख्य रूप से विधायिका में बहस और चर्चा को दरकिनार करने के लिए पारित किया गया था।

एके रॉय बनाम भारत संघ (1982):

  • सुप्रीम कोर्ट ने तर्क दिया कि राष्ट्रपति की अध्यादेश बनाने की शक्ति न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर नहीं है। हालांकि, न्यायिक समीक्षा का प्रयोग केवल तभी किया जाना चाहिए जब फैसले को चुनौती देने के लिए पर्याप्त आधार हों, न कि “हर आकस्मिक और पारित चुनौती” पर।

डीसी वाधवा बनाम बिहार राज्य (1986):

  • अध्यादेशों के लगातार प्रयोग के मुद्दे को फिर से एक याचिका के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय में लाया गया। यह याचिका बिहार में वर्ष 1967 एवं वर्ष 1981 के बीच 256 अध्यादेशों की घोषणा से संबंधित थी। इसमें 11 ऐसे अध्यादेश शामिल थे जिन्हें 10 से अधिक वर्षों तक प्रयोग में लाया जाता रहा, इस कारण उस समय बिहार ‘अध्यादेश राज’ के रूप में प्रसिद्ध था।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि कार्यपालिका द्वारा अध्यादेश जारी करने की शक्ति का प्रयोग असाधारण परिस्थितियों में किया जाना चाहिये न कि विधायिका की विधि बनाने की शक्ति के विकल्प के रूप में।

कृष्ण कुमार सिंह केस, (2017)

  • कृष्ण कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अध्यादेशों को जारी करने का अधिकार प्रकृति में पूर्ण नहीं है, यह सशर्त है।
  • यदि मौजूदा परिस्थितियों में तत्काल कार्रवाई करना आवश्यक है तभी इसका प्रयोग किया जाना चाहिये। अध्यादेशों का लगातार प्रयोग संविधान पर आस्था के प्रति धोखा है एवं लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का अनुचित प्रयोग है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

yojna ias daily current affairs hindi med 25th May 2023

 

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