भारत में भक्ति आंदोलन और संत कबीर दास की जयंती

भारत में भक्ति आंदोलन और संत कबीर दास की जयंती

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 1 के अंतर्गत ‘ मध्यकालीन भारतीय इतिहास, कला एवं संस्कृति और विरासत, भक्ति आंदोलन में कबीर दास का योगदान, भारत में भक्ति आंदोलन के महत्वपूर्ण व्यक्तित्व ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ भारत में भक्ति आंदोलन, संत कबीर दास, कबीर बीजक (कविताएँ और छंद), कबीर ग्रंथावली, कबीर के दोहे ’ खंड से संबंधित है। इसमें योजना आईएएस टीम के सुझाव भी शामिल हैंयह लेख ‘ दैनिक कर्रेंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ भारत में भक्ति आंदोलन और संत कबीर दास की जयंती ’ से संबंधित है।)

 

खबरों में क्यों ? 

 

  • हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने 22 जून, 2024 को मध्यकालीन संत और भक्ति आंदोलन के प्रमुख कवि कबीर दास की 647वीं जयंती मनाई।
  • भारत में कबीर दास जयंती हिंदू चंद्र कैलेंडर (Hindu Lunar Calendar) के अनुसार ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है।

 

कबीर दास : 

 

 

  • कबीर दास, 15वीं सदी के मध्यकालीन भारत के रहस्यवादी कवि और संत थे। 
  • उनका प्रारंभिक जीवन एक मुस्लिम परिवार में बीता, परंतु वे अपने शिक्षक, भक्ति आंदोलन के प्रमुख प्रमुख प्रणेता रामानंद से काफी प्रभावित थे, जो हिन्दू धर्म से संबंधित थे।
  • उनका जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में हुआ था, और उनका पालन-पोषण एक हिंदू बुनकर दंपत्ति ने किया था।
  • कबीर दास भक्ति आंदोलन के निर्गुण शाखा के महत्वपूर्ण व्यक्ति थे, जिन्होंने ईश्वर के प्रति समर्पण और प्रेम को जोर दिया। 
  • उनकी रचनाएँ हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल के निर्गुण शाखा के ज्ञानमार्गी उपशाखा के महानतम काव्यों के रूप में प्रसिद्ध हैं।
  • कबीर ने अपने गुरुओं, जैसे कि रामानंद और शेख तकी, से आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्राप्त किया और अपने दर्शन को एक अद्वितीय आकार दिया। 
  • कबीर के दोहे जो उन्होंने अपने छंदों के रूप में लिखे थे, उनकी प्रसिद्धि को दर्शाते हैं। 
  • उनकी रचनाएँ हिंदी भाषा में लिखी गईं और लोगों को जागरूक करने के लिए वे अपने दोहों का उपयोग करते थे।
  • उनकी रचनाओं ने भारतीय साहित्य और हिंदी भाषा के विकास को महत्त्वपूर्ण रूप से समृद्ध किया है। 
  • उनके द्वारा लिखी गई ब्रजभाषा और अवधी बोलियों में लिखी गई रचनाएँ आज भी प्रसिद्ध हैं।
  • कबीर दास के लेखन का भक्ति आंदोलन पर बहुत प्रभाव पड़ा तथा इसमें कबीर ग्रंथावली, अनुराग सागर, बीजक और सखी ग्रंथ जैसे ग्रंथ शामिल हैं। 
  • उनके छंद सिख धर्म के ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में पाए जाते हैं। 
  • उनके प्रमुख रचनात्मक कार्यों का संकलन पाँचवें सिख गुरु, गुरु अर्जन देव द्वारा किया गया था।
  • उन्होंने अपने दो-पंक्ति के दोहों के लिए सबसे अधिक प्रसिद्धि प्राप्त की, जिन्हें ‘कबीर के दोहे’ के नाम से जाना जाता है।
  • भाषा : कबीर की कृतियाँ हिंदी भाषा में लिखी गईं, जिन्हें समझना आसान था। लोगों को जागरूक करने के लिए वह अपने लेख दोहों के रूप में लिखते थे।

 

भारत में भक्ति आंदोलन :

 

  • भारत के संपूर्ण सांस्कृतिक इतिहास में भक्ति आंदोलन मध्यकाल के सांस्कृतिक इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण साहित्यिक घटना या आन्दोलन था, जो मुख्य रूप से 6वीं और 17वीं शताब्दी के बीच भारत में उपजी और अत्यंत तेजी तत्कालीन भारतीय समाज में प्रसारित हुई। 
  • इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य व्यक्तिगत भगवान या देवता के प्रति उत्कट भक्ति को प्रचार – प्रसार करना था, जो मोक्ष और दिव्य प्राप्ति के साधन के रूप में प्रत्यक्ष आध्यात्मिक अनुभव, प्रेम और भक्ति पर जोर देता था। 
  • भारत में भक्ति आंदोलन ने जाति, पंथ और धर्म जैसे अनेक सामाजिक असमानताओं को दूर कर लिया था, जिससे पूरे भारत में धार्मिक प्रथाओं, सामाजिक संबंधों, सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों और दार्शनिक विचारों में गहरा परिवर्तन आया।
  • इस आंदोलन की शुरुआत भारत के दक्षिण राज्यों संभवत: तमिल क्षेत्र में हुई, जहां अलवार (विष्णु के भक्त) और नयनार (शिव के भक्त) तथा वैष्णव और शैव कवियों ने कविताओं के माध्यम से भक्ति का प्रचार-प्रसार किया। 
  • अलवार और नयनार अपने देवताओं की स्तुति में तमिल भाषा में भजन गाते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा करते थे। 
  • उनकी रचनाओं में भगवान की महिमा और प्रेम की भावना व्यक्त होती थी।
  • भक्ति आंदोलन के द्वारा भक्ति योग के माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति के तरीके और मार्ग के रूप में स्थापित किया गया। 
  • इस आंदोलन ने भारत के मध्यकाल के समाज में व्याप्त धार्मिक आडम्बरों, कुरीतियों आदि के स्थान पर एक तार्किक धार्मिक विचारों को एक नई दिशा दी और सांप्रदायिक कट्टरता, आपसी वैमनस्यता और जातिगत भेदभाव की जगह सामाजिक एकता को प्रसारित और समृद्ध किया।
  • भक्ति आंदोलन के दौरान भारत में एक तरफ जहाँ सगुण भक्ति परंपराएँ शिव, विष्णु और उनके अवतारों या देवी के विभिन्न रूपों जैसे विशिष्ट देवताओं की पूजा पर केंद्रित थीं, जिन्हें प्रायः मानवशास्त्रीय रूपों में अवधारणाबद्ध किया जाता था। वहीं दूसरी ओर, निर्गुण भक्ति भगवान के एक अमूर्त रूप की पूजा पर आधारित थी।

 

भक्ति आंदोलन के समय भारत की सामाजिक व्यवस्था :

 

  • भक्ति आंदोलन भारतीय उपमहाद्वीप में हिंदू, मुसलमान और सिख समुदायों के बीच एक महत्वपूर्ण आंदोलन था। 
  • इस काल में सामाजिक-धार्मिक सुधारकों ने भगवान की भक्ति को प्रमुख आधार बनाया।
  • भारत में इस आंदोलन में उच्च और निम्न जातियों से आए कवियों ने साहित्य को एक महत्वपूर्ण साधन बनाया, जिसने लोकप्रिय कथाओं को मजबूती से स्थापित किया। 
  • इन संतों ने समाज में सांप्रदायिक कट्टरता और जातिगत भेदभाव की आलोचना की और वास्तविक मानवीय आकांक्षाओं के क्षेत्र में धर्म की प्रासंगिकता का दावा किया। 
  • भक्ति आंदोलन के समस्त कवि भारत में सभी लोगों के लिए ईश्वर की भक्ति को ही सच्चे अर्थों में संसार के मायामोह से मुक्ति प्राप्त करने का साधन मानते थे। 
  • भक्ति आंदोलन के कवियों की भक्ति स्वार्थरहित और अनन्य श्रद्धा पर आधारित थी।
  •  इस आंदोलन ने तत्कालीन भारतीय समाज की विभाजक और विध्वंसक तत्वों के खिलाफ सार्थक भूमिका अदा की और कर्म योग, ज्ञान योग, और भक्ति योग के माध्यम से ईश्वर प्राप्ति के मार्ग को स्थापित किया।
  • भक्तिकालीन कवियों ने ईश्वर के प्रति समर्पण को महत्व दिया और मूर्ति पूजा को उन्मूलन करने का प्रयास किया।

 

भक्ति आंदोलन में महिलाओं की भूमिका : 

 

  • भक्ति आंदोलन ने भारतीय समाज में महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण बदलाव लाया। 
  • यह आंदोलन महिलाओं को अपनी आध्यात्मिकता और भक्ति को व्यक्त करने का माध्यम प्रदान करता था, जिससे उन्हें घरेलू भूमिकाओं से बाहर निकलने में मदद मिली। 
  • महिलाएं धार्मिक सभाओं में सक्रिय रूप से शामिल होती थीं, भक्तिपूर्ण गीत गाती थीं और आध्यात्मिक चर्चाओं में भाग लेती थीं
  • इस आंदोलन में महिला संतों का भी महत्वपूर्ण योगदान था। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से धार्मिक भावनाओं को बढ़ावा दिया और जाति भेद को कम किया। 
  • इस आंदोलन ने महिलाओं को आध्यात्मिक जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद की और उन्हें समाज में अधिक समानता दिलाई।

अंडाल : 

 

  • अंडाल एक महिला अलवार थीं, जिन्होंने खुद को विष्णु की प्रेमिका के रूप में देखा। उनकी रचनाएँ और उमें निहित भक्ति का भाव आज भी प्रमुख हैं।

 

कराईकल अम्मैयार : 

 

  • कराईकल अम्मैयार शिव की भक्त थीं। उन्होंने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या का मार्ग अपनाया। 
  • उनकी रचनाओं को नयनार परंपरा के भीतर संरक्षित किया गया है।

 

भक्ति आंदोलन के महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व : 

 

कन्नड़ क्षेत्र :

  • कन्नड़ क्षेत्र में भक्ति आंदोलन की शुरुआत 12वीं शताब्दी में बसवन्ना (1105-68) द्वारा की गई थी।

 

महाराष्ट्र :

  • महाराष्ट्र में भक्ति आंदोलन 13वीं सदी के अंत में शुरू हुआ। इसके समर्थकों को वारकरी कहा जाता था। इसके सबसे प्रमुख नामों में ज्ञानदेव (1275-96), नामदेव (1270-50), और तुकाराम (1608-50) शामिल हैं।

 

असम :

  • श्रीमंत शंकरदेव एक वैष्णव संत थे जिनका जन्म 1449 ईस्वी में असम के नगांव जिले में हुआ था। उन्होंने नव-वैष्णव आंदोलन को शुरू किया था।

बंगाल :

  • चैतन्य बंगाल के एक प्रसिद्ध संत और सुधारक थे, जिन्होंने कृष्ण पंथ को लोकप्रिय बनाया।

 

उत्तरी भारत :

  • इस क्षेत्र में 13वीं से 17वीं शताब्दी तक कई कवि भक्ति आंदोलन से जुड़े रहे। 
  • कबीर, रविदास, और गुरु नानक ने निराकार भगवान (निर्गुण भक्ति) की महत्ता बताई। 
  • राजस्थान की मीराबाई (1498-1546) ने कृष्ण की स्तुति में भक्ति छंदों की रचना की और उनका गुणगान किया। 
  • सूरदास, नरसिंह मेहता, और तुलसीदास ने भी भक्ति साहित्य और भक्ति आंदोलन में अमूल्य योगदान दिया तथा इसकी गौरवशाली विरासत को बढ़ाया।

इस प्रकार भक्ति आंदोलन ने मध्यकालीन भरतीय समाज में जातिगत भेदभाव, धार्मिक आडम्बरों और कट्टरताओं को समाप्त करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

 

स्त्रोत – द हिन्दू एवं इंडियन एक्सप्रेस । 

 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत में भक्ति आंदोलन और कबीर दास के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए। 

  1. कबीर दास भक्ति आंदोलन के भक्तिकाल के निर्गुण शाखा के ज्ञानमार्गी उपशाखा के व्यक्ति थे।
  2. कबीर दास की रचनाओं ने भारतीय साहित्य और हिंदी भाषा के विकास को महत्त्वपूर्ण रूप से समृद्ध किया है। 
  3. भक्ति आंदोलन दक्षिण भारत से शुरू होकर उत्तर भारत में पहुंची थी। 
  4.  भक्ति आंदोलन के कारण महिलाओं को घरेलू भूमिकाओं से बाहर निकलने में मदद मिली। 

उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ? 

A. केवल 1, 2 और 3

B. केवल 2, 3 और 4 

C. इनमें से कोई नहीं। 

D. उपरोक्त सभी। 

उत्तर – D

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1. भारत में भक्ति आंदोलन के उद्भव के प्रमुख कारणों को रेखांकित करते हुए यह चर्चा कीजिए कि भक्ति आंदोलन ने किस प्रकार भारतीय समाज में सांप्रदायिक कट्टरता, धार्मिक आडम्बर और जातिगत भेदभाव को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ? तर्कसंगत मत प्रस्तुत कीजिए ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )  

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