SEED योजना

SEED योजना

  • आपने अपनी यात्रा के दौरान अक्सर लोगों को रेलगाड़ियों में गाना बजाते या नाचते हुए देखा होगा। इसके अलावा आपने सभी चौराहों या नुक्कड़ पर सपेरे, बंजारे या मदारियां देखी होंगी।
  • क्या आपने कभी सोचा है कि ये लोग कौन हैं? उनका इतिहास क्या है, वे अपने जीवन में ऐसा क्यों कर रहे हैं और उनके जीवन के उत्थान के लिए हमने या सरकार ने क्या किया?
  • दरअसल, ब्रिटिश सरकार के दौरान वर्ष 1871 में एक कानून आया जिसे आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 कहा गया।
  • पूर्वाग्रह के कारण लगभग 200 समुदायों को इस कानून के तहत ‘वंशानुगत अपराधी’ माना गया, क्योंकि इनमें से कुछ लोगों ने लूटपाट और स्नैचिंग आदि के माध्यम से अपना जीवन व्यतीत किया। इस प्रकार ये समुदाय निगरानी, ​​कारावास और घोर भेदभाव का शिकार हो गए।
  • उस समय के नीति निर्माताओं का मानना ​​था कि अपराध एक अनुवांशिक गुण है, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्वतः ही स्थानांतरित हो जाता है। बाद में, जब देश स्वतंत्र हुआ, तो वर्ष 1949 में एक अखिल भारतीय आपराधिक जनजाति जांच समिति का गठन किया गया।
  • इस समिति की सिफारिश के आधार पर 1952 में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए इस कानून को हटा दिया गया था। जिसके बाद ये गैर-अधिसूचित, खानाबदोश और अर्ध-घुमंतू जनजातियों के रूप में जाने जाने लगे।
  • ये लोग कई तरह के व्यवसायों में काम करते हैं जैसे चरवाहा, छोटे जानवरों का शिकार करना, भोजन इकट्ठा करना, नृत्य करना, गाना गाना, कलाबाजी करना और सपेरा और मदारी आदि।
  • वे खानाबदोश जीवन बन गए क्योंकि उस समय वे पुलिस-प्रशासन आदि से बचने के लिए अपना ठिकाना बदल लेते थे। कभी-कभी आजीविका की तलाश में वे अपना निवास भी बदलते रहते थे।
  • उदाहरण के लिए, जब किसी विशेष क्षेत्र की घास को जानवरों ने चराना समाप्त कर दिया, तो वहां का पशुचारक समुदाय किसी अन्य स्थान पर चला गया।
  • स्वाधीनता के बाद समय-समय पर सरकारों द्वारा उनके कल्याण के लिए कई कदम भी उठाए गए, लेकिन उनकी स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया।
  • इस तरह ये लोग सबसे अधिक उपेक्षित, हाशिए पर रहने वाले और आर्थिक और सामाजिक रूप से वंचित समुदाय बन गए। वे पीढ़ियों से गरीबी का जीवन जीने को मजबूर हैं। ऐतिहासिक रूप से उनकी कभी भी निजी भूमि या घर के स्वामित्व तक पहुंच नहीं थी।
  • अब सवाल यह उठता है कि हम आज अचानक इस समुदाय के बारे में क्यों बात कर रहे हैं। दरअसल, 16 फरवरी को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार ने “DNTs के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए योजना” लॉन्च की है।
  • इस योजना को संक्षेप में SEED कहा जा रहा है। इन समुदायों के कल्याण के लिए शुरू की गई इस योजना के मुख्य चार घटक हैं –
    • इन समुदायों के उम्मीदवारों को अच्छी गुणवत्ता वाली कोचिंग प्रदान करना ताकि वे सिविल सेवा, चिकित्सा, इंजीनियरिंग और एमबीए आदि प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रवेश ले सकें।
    • आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के माध्यम से इन समुदायों को स्वास्थ्य बीमा प्रदान करना।
    • प्रधानमंत्री आवास योजना के माध्यम से उनके आवास की व्यवस्था करना
    • डीएनटी/एनटी/एसएनटी सामुदायिक संस्थानों के छोटे समूहों को बनाने और मजबूत करने के लिए सामुदायिक स्तर पर आजीविका पहल को सुगम बनाना। बता दें कि डीएनटी यानी डीनोटिफाइड ट्राइब्स, एनटी यानी नोटिफाइड ट्राइब्स और एसएनटी यानी सेमी नोटिफाइड ट्राइब्स।
  • इस योजना के तहत, 2021-22 से 2025-26 तक, 5 वर्षों की अवधि में लगभग 200 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।
  • योजना को लागू करने का काम यानी इसकी नोडल एजेंसी सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग द्वारा बनाई गई है.
  • इस विभाग ने योजना को लागू करने के लिए एक पोर्टल भी बनाया है। इस पोर्टल के माध्यम से लाभार्थी अपना पंजीकरण कराने के साथ-साथ अपने आवेदन की वास्तविक स्थिति को भी ट्रैक कर सकेंगे।
  • इसके माध्यम से लाभार्थियों को सीधे उनके खाते में भुगतान किया जा सकता है। इसके अलावा, यह पोर्टल इन समुदायों के लिए डेटा स्टोरेज के रूप में भी काम करेगा।
  • गौरतलब है कि वर्ष 2015 में इस समुदाय के कल्याण के लिए गैर-अधिसूचित, घुमंतू और अर्ध घुमंतू जनजातियों के लिए एक राष्ट्रीय आयोग का भी गठन किया गया था।

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