24 Nov लचित बोरफुकन
लचित बोरफुकन
संदर्भ- प्रसिद्ध असमिया जनरल लचित बोरफुकन की 400वी जयंती का तीन दिवसीय उत्सव 23 नवंबर को नई दिल्ली में शुरु होगा। इसके साथ ही हाल ही में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा अहोम जनरल की 400वी जयंति में चल रहे उत्सव में एक थीम गीत का उद्घाटन किया।
इसी वर्ष भारत के पूर्वराष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने लचित बोरफुकन की 150 फुट की कांस्य प्रतिमा की आधारशिला रखी।
अहोम साम्राज्य-
- अहोम लोग भारत के असम राज्य के निवासी हैं, जिन्हें ताई वंश का माना जाता है, जो 13वी सदी में ताई राजकुमार चुकाफा के साथ ब्रह्मपुत्र घाटी में आए थे।
- अहोम के एक तिहाई वंशज अभी भी ताई धर्म फुरलांग का पालन करते हैं।
- 13 वी से 19 वी सदी तक लगातार शासन करने वाले अहोम शासकों ने 600 वर्षों तक शासन किया।
- साम्राज्य समृद्ध होने के साथ बहुजातीय भी था।
- इसकी भौगोलिक स्थिति ब्रह्मपुत्र घाटी के ऊपरी व नीचले इलाकों में थी।
- यहां सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी की उपस्थिति के कारण चावल की खेती की जाती है।
- 1615-82 में मुगल शासक जहाँगीर, शाहजहाँ औरंगजेब के साथ अहोमों का कई बार संघर्ष हुआ।
- अहोम राजा स्वर्गदेव चक्रधर सिंहा के समय हारे हुए कुछ क्षेत्र प्राप्त करने के लिए पुनः आक्रमण हुए जिनके परिणामस्वरूप सरायघाट का यूद्ध हुआ।
सरायघाट का युद्ध –
- युद्ध में मुगलों का नेतृत्व कछवाहा राजा रामसिंह और अहोमों का नेतृत्व लाटित बोरफुकन ने किया था।
- युद्ध, ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर सरायघाट में सन 1671 में लड़ा गया था।
- युद्ध में अहोमों की कुशल रणनीति व मनोवैज्ञानिक तरीके से लड़ने की तकनीक विशिष्ट थी।
- यह युद्ध अहोम साम्राज्य को जीतने के लिए मुगलों का अंतिम प्रयास था।
लाचित बोरफुकन-
- एक प्रसिद्ध सैन्य कमांडर लाचित बोरफुकन का जन्म अहोम साम्राज्य के प्रसिद्ध अधिकारी के घर में हुआ था। इनका पूरा नाम चाउ लाचित फुकनलुंग था।
- अहोम साम्राज्य की सेना अत्यधिक व्यवस्थित थी जिनका सेना प्रमुख लाचित को बनाया गया था।
- सेना प्रमुख बनने के बाद उसने अहोमों को संगठित कर मुगलों से युद्ध करने के लिए तैयार किया। तथा मुगलों की 40000 सेना पर विजय पायी।
- सरायघाट की विजय के एक वर्ष बाद ही बोरफुकन का निधन हो गया।
युद्ध नीति
सेना का संगठन- सेना प्रमुख बनने के समय अहोम और मुगलों के कई युद्ध हो चुके थे, जिससे सेना अस्त व्यस्त हो गई थी। सेना को मजबूत बनाने के लिए सेना में भर्ती, हथियारों का निर्माण, तोपों की आपूर्ति, किलों का निर्माण, नौकाओं का निर्माण आदि किया।
नौसेना- सरायघाट का युद्ध ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे लड़ा गया, उसने पहले ही सेना को जल में युद्ध करने के लिए तैयार कर दिया था।
आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल- मुगलों की बड़ी बड़ी नावों के सामने अहोमों की नौसेना शक्ति कमजोर पड़ने लगी थी, ऐसे मे उसने बच्छारिना यानि छोटी नौकाओं का निर्माण किया जो छोटी होने के साथ गति में तीव्र थी और मुगलों का मुकाबला कर पाई। इस तकनीक को गुरिल्ला तकनीक भी कहा जाता है।
अंतिम विजय – अहोम राजा ने बोरफुकन को ललाट आक्रमण करने के लिए कहा जिससे 10000 अहोमों की मृत्यु हो गई इससे मुगलों की आंशिक जीत मिली। लाचित ने अंत में आश्चर्यजनक व अनियंत्रित हमलों से मुगल सेना को पराजित कर दिया। इसके बाद मुगलों ने कभी भी अहोम पर आक्रमण नहीं किया।
वर्तमान में लाचित बोरफुकन की स्मृति-
- वर्तमान में लाचित बोरफुकन को असम में एक वीर के भांति सम्मान दिया जाता है। इसके साथ ही असमवीसियों की एकजुटता का प्रतीक माना जाता है।
- राष्ट्रीय रक्षा अकादमी सर्वश्रेष्ठ कैडेट को लाचित बोरफुकन स्वर्ण पदक से सम्मानित करती है।
- 1930 के दशक से प्रत्येक वर्ष 24 नवंबर को लाचित दिवस मनाया जाता है।
- बोरफुकन की स्मृति में हुलुन्गपारा में उनकी समाधि बनायी गई है।
स्रोत
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