असद अहमद केस में स्पेशल टास्क फोर्स की भूमिका

असद अहमद केस में स्पेशल टास्क फोर्स की भूमिका

असद अहमद केस में स्पेशल टास्क फोर्स की भूमिका

संदर्भ- कई वर्षों से आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त अतीक अहमद का पुत्र असद अहमद एसटीएफ के साथ मुठभेड़  में मारा गया। असद अहमद के खिलाफ उमेश पाल की हत्या करने का मुकदमा चल रहा था। हत्या जैसे गंभीर अपराधों के साथ समस्त परिवार पर मुकदमा चल रहा है। 

अतीक अहमद- अतीक अहमद उत्तर प्रदेश में एक आपराधिक गतिविधियों के समूह को प्रचालित करता था। जिसके खिलाफ 100 से अधिक केस दर्ज हैं। प्रयागराज के अभियोजना अधिकारियों के अनुसार अतीक अहमद के खिलाफ 50 से अधिक मामलों पर मुकदमा चल रहा है, उसके द्वारा एक एमएलए की हत्या, राजूपाल की हत्या, राजू पाल के गवाह उमेश पाल की हत्या का आरोप है। वर्तमान में अतीक साबरमती जेल में कैद है। 

उमेश पाल, राजूपाल हत्याकांड का एक प्रमुख गवाह था जिसे अपहरण के बाद डरा धमका कर झूठी गवाही के हलफनामे में हस्ताक्षर करवाए गए। अदालत में अपना पक्ष रखने के लिए जा रहे उमेश पाल की शूटर्स द्वारा हत्या कर दी गई। उमेश पाल के हत्यारों को पकड़ने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स का प्रयोग किया जा रहा है, जिससे मुठभेड़ में असद अहमद मारा गया। 

स्पेशल टास्क फोर्स- 

  • एसटीएफ, पुलिस विभाग की एक विशेष यूनिट है। जिसे कुछ विशेष समस्याओं से निपटने के लिए गठित किया जाता है।
  • किसी विशेष में केस में पुलिस बल के कम होने की स्थिति में भी इस फोर्स को सम्मिलित किया जाता है।
  • भारत में प्रत्येक राज्य को एसटीएफ गठित करने का अधिकार है।
  • सर्वप्रथम 1980 में एसटीएफ गठित करने वाले राज्य,तमिलनाडु व कर्नाटक हैं।  
  • उत्तर प्रदेश में प्रयुक्त एसटीएफ का गठन 4 मई 1998 को किया गया था।

उत्तर प्रदेश में विशेष कार्य दल का निर्माण निम्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है-

  • जिला पुलिस के साथ मिलकर आपराधिक गिरोहों के खिलाफ कार्यवाही करना।
  • विघटकारी तत्वों अर्थात जो फेक न्यूज से लोगों की धारणा को परिवर्तित करने का प्रयास करते हैं, के खिलाफ कार्यवाही करना।
  • अंतर्जनपदीय डकैतों के गिरोहों को समाप्त करना।
  • माफिया गिरोहों के खिलाफ जानकारी प्राप्त करने के लिए खुफिया तरीकों का प्रयोग करना। खुफिया तरीकों से ही कार्यवाही करना। अतीक अहमद के गिरोह को समाप्त करने के लिए भी स्पेशल टास्क फोर्स को नियुक्त किया गया है। 

एसटीएफ अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए मानव बुद्धि, प्रौद्योगिकी और परिष्कृत रणनीति पर व्यापक रूप से निर्भर करती है। लगभग 15 वर्षों के अपने छोटे से जीवनकाल में, यूपी एसटीएफ का भारत के राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित 81 पुलिस वीरता पदकों और 60 अधिकारियों को विशिष्ट वीरता के कार्यों के लिए बारी-बारी से पदोन्नति दिए जाने का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है। 

स्पेशल टास्क फोर्स की शक्तियाँ

  • स्पेशल टास्क फोर्स पुलिस बल की किसी भी शाखा से आपराधिक अधिसूचना प्राप्त कर सकती है।
  • पुलिस महानिदेशक द्वारा चिन्हित माफियाओं / गिरोहों/ डकैतो/ विघटनकारी तत्वों/खुफिया एजेन्टों के विरूद्व कार्यवाही हेतु स्पेशल टास्क फोर्स को अपने कार्य क्षेत्र में Search, Seizure, गिरफ्तारी, अभिरक्षा, कुर्की व विवेचना की शक्तियाँ प्राप्त है।
  • स्पेशल टास्क फोर्स कार्यवाही के निर्वहन के लिए स्वयं द्वारा निर्धारित मापमान का प्रयोग कर सकती है।

हत्या से संबंधित दण्ड प्रावधान

भारतीय दण्ड संहिता 1860 के अंतर्गत 80 धाराएं आती है और धारा 299, 300, 302, 304 में आपराधिक मानव वध और हत्या के लिए दण्ड सुनिश्चित किया गया है, जिसके तहत मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास दिया जाना है। मृत्युदण्ड अत्यधिक विरल परिस्थिति में ही दिया जाता है। 

इसके तहत निम्नलिखित अपराधों के लिए मृत्युदण्ड दिया जाता है-

  • हत्या, दहेज दत्या
  • आपराधिक बल व हमला
  • अपहरण, दासत्व, बलातश्रम आदि।
  • गर्भपात, बलात्कार आदि।

उत्तर प्रदेश पुलिस के अनुसार उमेशपाल हत्या के केस में अतीक अहमद समूह, (जिसमें असद अहमद भी शामिल था) द्वारा आपराधिक बल, हमला, अपहरण व हत्या किए जाने के सबूत प्राप्त हुए हैं। जिसके तहत असद अहमद को मृत्युदण्ड दिया जाना तय था।

धारा 304, दो पक्षों में हुई मुठभेड़ को निर्देशित करती है, जिसके तहत किसी एक पक्ष की मृत्यु हो जाती है उसे हत्या की संज्ञा नहीं दी जाती है। इसलिए उस पक्ष को मृत्युदण्ड से कुछ कम दण्ड दिया जाता है। लेकिन असद अहमद के साथ हुई मुठभेड़ धारा 304 के अंतर्गत नहीं आती। बल्कि यह पुलिस मुठभेड़ के अंतर्गत हुई मृत्यु है जो पुलिस व अपराधी के मध्य हुई।

पुलिस मुठभेड-

भारत में पुलिस एनकाउंटर अर्थात पुलिस द्वारा दण्ड दिए जाने का कोई प्रावधान नहीं है किंतु भारत में पुलिस एनकाउंटर की दो स्थितियाँ हो सकती हैं-

  • अगर कोई अपराधी पुलिस गिरफ्त से भाग रहा हो, अपराधी को रोकने के लिए फायरिंग का सहारा लेना पड़ता है।
  • यदि अपराधी पुलिस पर हमला कर रहा हो, तो ऐसी परिस्थिति में आत्मरक्षा के लिए पुलिस के पास  फायरिंग का विकल्प होता है। 

पुलिस मुठभेड़ में अपराधी की मृत्यु के बाद की स्थिति-

  • घटना की जानकारी मानव अधिकार आयोग NHRC को दी जानी अनिवार्य होती है।
  • घटना की सूचना मृत आपराधी के परिवार को दी जाती है। 
  • धारा 176 के तहत सम्पूर्ण घटना की मजिस्ट्रियल जाँच की जाती है, तथा घटना की सम्पूर्ण रिपोर्ट तैयार की जाती है।
  • धारा 190 के तहत मजिस्ट्रियल जांच की रिपोर्ट को न्यायिक मजिस्ट्रेट को सौंपा जाता है।

स्रोत

Yojna IAS Daily current affairs hindi med 14th April 2023

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