खुदरा मुद्रास्फीति और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 2024

खुदरा मुद्रास्फीति और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 2024

स्त्रोत – द हिन्दू एवं पीआईबी।

सामान्य अध्ययन – भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास, खुदरा मुद्रास्फीति, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, मौद्रिक नीति समिति (MPC), सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस), भारत में खाद्य मुद्रास्फीति, किसानों पर बढ़ती खाद्य मुद्रास्फीति का प्रभाव और देश के व्यापक आर्थिक संकेतक, उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति (CFPI), न्यूनतम समर्थन मूल्य।

 

खबरों में क्यों ?

 

  • हाल ही में भारत सरकार के द्वारा जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार भारत में फरवरी 2024 में खुदरा मुद्रास्फीति 5.09 प्रतिशत हो गई है। 
  • यह लगातार छह महीने से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा तय किए गए दो से छह प्रतिशत के बीच के दायरे में है।
  • हाल ही में भारत में खुदरा खाद्य वस्तुओं के दाम में तेजी के बावजूद उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति जनवरी में 5.1 प्रतिशत के लगभग बराबर है।
  • फरवरी 2024 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पिछले महीने के मुकाबले लगभग अपरिवर्तित रहकर 5.09 प्रतिशत ही है, वहीं उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक में खाद्य पदार्थों की मूल्य वृद्धि की रफ्तार 36 आधार अंक बढ़कर 8.66 फीसदी हो गई है ।
  • सब्जियों की कीमतों में 30.3 फीसदी की मुद्रास्फीति दर्ज की गई है, जो कि जनवरी से 315 आधार अंक की तेजी है।
  • जनवरी में आलू की कीमतें जहां साल-दर-साल के आधार पर लगभग दो फीसदी की अपस्फीति से बढ़कर 12.4 फीसदी की मुद्रास्फीति पर पहुंच गईं, वहीं प्याज में 22.1 फीसदी की मुद्रास्फीति दर्ज की गई और टमाटर की कीमतों में बढ़ोतरी करीब 400 आधार अंक के इजाफे के साथ छह महीने के उच्चतम स्तर 42 फीसदी पर पहुंच गई। 
  • उपभोक्ता कार्य विभाग के दैनिक मूल्य निगरानी के अनुसार  आलू, प्याज और टमाटर की औसत खुदरा कीमतें एक साल पहले के स्तर से 14 मार्च तक क्रमशः 21.3 फीसदी, 41.4 फीसदी और 35.2 फीसदी ज्यादा हैं।
  • 7 मार्च 2024 को जारी कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार, 2023-24 के बागवानी फसल वर्ष में प्याज का उत्पादन इस साल 15.6 फीसदी कम हुआ है और आलू के उत्पादन में भी लगभग दो प्रतिशत की कमी हुई है। 
  • 14 मार्च  2024 को जारी केंद्रीय जल आयोग का जल भंडारण संबंधी आंकड़ा भी ग्रीष्म ऋतु में बोई जाने वाली फसलों के लिए देश भर के 150 जलाशयों में वास्तविक भंडारण (लाइव स्टोरेज) के कुल क्षमता के 40 प्रतिशत है और यह 10 साल के औसत से एवं पिछले साल के अनुपात अर्थात दोनों ही लिहाज से कम है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर माइकल पात्रा ने मौद्रिक नीति समिति को बताया कि लगातार उच्च खाद्य मुद्रास्फीति से अर्थव्यवस्था में अस्थिरता बढ़ सकती है ।

 

भारत में मुद्रास्फीति को मापने के तरीके : 

 

थोकमूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index – WPI) : 

  • यह भारत में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला मुद्रास्फीति संकेतक (Inflation Indicator) है।
  • भारत में इसे वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce and Industry) के आर्थिक सलाहकार (Office of Economic Adviser) के कार्यालय द्वारा प्रकाशित किया जाता है।
  • इसमें भारत के घरेलू बाज़ार में थोक बिक्री के लिए उपलब्ध होने वाले वस्तुओं के पहले बिंदु से किए जाने-वाले (First point of bulk sale) सभी लेन-देन शामिल होते हैं।
  • थोकमूल्य सूचकांक में समस्या यह है कि इसमें आम जनता थोक मूल्य पर उत्पाद नहीं खरीदती है।

 

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index – CPI) : 

  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक खुदरा खरीदार के अनुसार वस्तुओं की कीमतों में होने वाले दामों के बदलावों  को मापता है।
  • इस सूचकांक में चयनित वस्तुओं और सेवाओं के खुदरा मूल्यों के स्तर में समय के साथ होने वाले बदलाव को मापता है, जिसमें उपभोक्ता वस्तुओं को खरीदने में अपनी आय को खर्च करते हैं।
  • खुदरा मुद्रास्फीति, जिसे CPI मुद्रास्फीति के रूप में भी जाना जाता है, यह उस दर को परिभाषित करता है, जिस पर उपभोक्ताओं द्वारा व्यक्तिगत उपयोग के लिए खरीदी जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें समय के साथ बढ़ती हैं। 
  • यह भोजन, कपड़े, आवास, परिवहन और चिकित्सा देखभाल सहित सामान्यतः घरेलू वस्तुओं की खरीद एवं सेवाओं की लागत में बदलाव का आकलन करता है।

 

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के प्रकार : 

 

 

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI)  के चार प्रकार होते हैं , जो निम्नलिखित हैं – 

औद्योगिक श्रमिकों (Industrial Workers-IW) के लिए  CPI
कृषि मज़दूर (Agricultural Labourer-AL) के लिए  CPI
ग्रामीण मज़दूर (Rural Labourer-RL) के लिए  CPI
ग्रामीण/शहरी/संयुक्त या शहरी गैर-मैनुअल कर्मचारियों (Urban Non-Manual Employees- UNME) के लिए CPI.

इनमें से प्रथम तीन को श्रम और रोज़गार मंत्रालय में श्रम ब्यूरो (Labor Bureau) द्वारा संकलित किया गया है। जबकि चौथे प्रकार की CPI को सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation) के अंतर्गत केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (Central Statistical Organisation-CSO) द्वारा संकलित किया जाता है।

 

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक बनाम थोक मूल्य सूचकांक : 

 

  • थोक मूल्य सूचकांक (WPI) का उपयोग थोक स्तर पर वस्तुओं की कीमतों का पता लगाने के लिये किया जाता है। अर्थव्यवस्था में सभी वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन को मापना या पता लगाना वास्तव में असंभव है। इसलिये थोक मूल्य सूचकांक में एक नमूने को लेकर मुद्रास्फीति को मापा जाता है। इसके पश्चात् एक आधार वर्ष तय किया जाता है जिसके सापेक्ष में वर्तमान मुद्रास्फीति को मापा जाता है।
  • भारत में थोक मूल्य सूचकांक के आधार पर महँगाई की गणना की जाती है।
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में मुद्रास्फीति की माप खुदरा स्तर पर की जाती है जिसमें उपभोक्ता प्रत्यक्ष रूप से जुड़े रहते हैं। यह पद्वति आम उपभोक्ता पर मुद्रास्फीति के प्रभाव को बेहतर तरीके से मापती है।
  • WPI, आधारित मुद्रास्फीति की माप उत्पादक स्तर पर की जाती है जबकि और CPI के तहत उपभोक्ता स्तर पर कीमतों में परिवर्तन की माप की जाती है।
  • दोनों बास्केट व्यापक अर्थव्यवस्था के भीतर मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति (मूल्य संकेतों की गति) को मापते हैं, दोनों सूचकांक अलग-अलग होते हैं जिसमें भोजन, ईंधन और निर्मित वस्तुओं का भारांक (Weightage) निर्धारित किया गया है।
  • WPI सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन को शामिल नहीं करता है, जबकि CPI में सेवाओं की कीमतों को शामिल किया जाता है।
  • भारत में रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने मुद्रास्फीति के प्रमुख मापक के रूप में अप्रैल 2014 में तय किए गए , CPI के मापक को को अपनाया था।

खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति और अवस्फीति की मौजूदा स्थिति : 

 

दालों और अनाजों में मुद्रास्फीति :

  • भारत के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक ’ के ताजा आंकड़ों से यह प्रतीत होता है कि खाद्य मुद्रास्फीति दो वस्तुओं  क्रमशः:अनाजों (11.9%) और दालों (13%) की कीमतें क्रमशः जुलाई व अगस्त में तेज़ी से बढ़ी है।
  • सब्ज़ियों की वार्षिक खुदरा मूल्य वृद्धि इससे भी अधिक, क्रमशः 37.4% और 26.1%, रही।
  • इस आंकड़ें के अनुसार सबसे अच्छा संकेतक टमाटर का रहा, जिसकी खुदरा मुद्रास्फीति इस अवधि के दौरान क्रमशः 202.1% और 180.3% रही।

आवश्यक वस्तुओं में अवस्फीति और सरकारों की रणनीति :

  • राजनीतिक कारणों की वज़ह से अधिकांश सरकारें स्वाभाविक रूप से उत्पादकों पर उपभोक्ताओं की संख्या अधिक होने से उपभोक्ताओं को विशेषाधिकार देती हैं। वर्तमान परिदृश्य में सरकार को अन्य समस्याओं के अतिरिक्त, विशेष रूप से दो कृषि / खाद्य वस्तुओं के उत्पादन और उत्पादकों दोनों को समान रूप से प्राथमिकता देनी चाहिए।
  • सरकारों द्वारा प्राथमिकता दिए जाने वाले वे क्षेत्र  हैं – 

भारत में वनस्पति  तेल उत्पादन के क्षेत्र में सरकारी प्राथमिकता की जरूरत : 

  • अक्तूबर माह में हुए सोयाबीन की कटाई और विपणन शुरू हो गया था, लेकिन तिलहन पहले से ही सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से निचले स्तर पर व्यापार कर रहा है। 
  • तेल और भोजन के रूप में, वर्तमान में सोयाबीन की मांग में हाल में विशेष (सोयाबीन से निर्मित पशुधन आहार सामग्री के रूप में उपयोग किया जाने वाला अवशिष्ट तेल रहित केक) कमी दर्ज़ की गई है।
  • भारत के बाजारों में आई मंदी का एक प्रमुख कारण भारत द्वारा दूसरे देशों से खाद्य तेल का आयात है। भारत का वनस्पति तेलों का आयात वर्ष 2022-23 में 17 मिलियन टन (mt) के उच्च स्तर तक पहुँचने का अनुमान है।

भारत में दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में सरकारी प्राथमिकता की जरूरत : 

 

  • भारत में हाल के दिनों में दूध पाउडर, मक्खन या घी की खरीदारी में कमी दर्ज़ की गई है। त्यौहारों (दशहरा-दिवाली) के बाद, आमतौर पर सर्दियों में जब दुग्ध – उत्पादन अपने चरम- स्तर पर होता है,तब भी  दुग्ध उत्पादों की खरीद में कमी आती है।
  • मिलावटी घी की बिक्री में वनस्पति वसा की मिलावट की कथित वृद्धि ने भी इस उद्योग की समस्याओं को और अधिक बढाकर चिंतनीय बना दिया है। आयातित तेलों, विशेषकर ताड़ के तेलों की कीमतों में गिरावट ने मक्खन एवं घी में सस्ते वसा के मिश्रण को और अधिक बढ़ा दिया है, जिसने भारत में उपभोक्ताओं के सामने स्वास्थ्य – संबंधी चिंताओं को जन्म देना प्रारंभ कर दिया है।

गेहूँ और चावल को आवश्यक वस्तुओं के रूप में सरकारी समर्थन : 

  • भारत में सरकारी तंत्रों द्वारा या सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) द्वारा प्रभावी वितरण के अभाव में अधिक आपूर्ति के कारण बाज़ार की कीमतों में गिरावट आ सकती है।

भारत में किसानों द्वारा किसी विशेष फसल का अधिक उत्पादन : 

  • आमतौर पर भारत में किसान प्रायः गेहूँ और चावल जैसी MSP-समर्थित फसलों का ही अधिक – से – अधिक उत्पादन बढ़ाकर सरकार द्वारा तय की गई न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के समर्थन को चुनौती देते हैं। इस अति उत्पादन से बाज़ार में इन फसलों की बहुतायत हो सकती है, जिससे उनकी कीमतें MSP से निचले स्तर तक पहुँच सकती हैं।

सरकारी स्तर पर अपर्याप्त खरीद और वितरण : 

  • भारत में सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) निर्धारित करती है और सरकार अपने तंत्रों के माध्यम से किसानों से फसल खरीदती है, हालाँकि खरीद बुनियादी ढाँचा एवं वितरण प्रणाली अक्षम हो सकती है, जिससे खरीद में देरी तथा उपभोक्ताओं को अनाज का अपर्याप्त वितरण होता रहता है।

 

उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति (CFPI) :

 

 

  • मुद्रास्फीति की एक विशिष्ट माप उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति (Consumer Food Price Inflation- CFPI), है जो विशेष रूप से उपभोक्ता की वस्तुओं और सेवाओं में खाद्य पदार्थों के मूल्य परिवर्तन पर केंद्रित है।
  • जिस दर से किसी सामान्य परिवार द्वारा उपभोग किए जाने वाले खाद्य उत्पादों की कीमतें समय के साथ बढ़ रही हैं या बढ़ने के संकेत देते हैं , यह उस दर की गणना करता है ।
  • CFPI व्यापक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) का एक उप-घटक है, जहाँ भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) दर की गणना करने के लिये CPI-संयुक्त (CPI-C) का उपयोग करता है।  
  • CFPI विशिष्ट खाद्य पदार्थों के मूल्य परिवर्तन की निगरानी  करता है जो सामान्यतः घरों में उपभोग किया जाता है। उदहारण के लिए – अनाज, सब्जियाँ, फल, डेयरी उत्पाद, मांस और अन्य खाद्य पदार्थ।

खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति के कारण :

 

 

मांग और आपूर्ति में असंतुलन की स्थिति : 

  • किसी भी देश या उसकी अर्थव्यवस्था में जब खाद्य पदार्थों की मांग और उसकी आपूर्ति के बीच असंतुलन कि स्थिति पैदा होता है, तो  खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ने लगती हैं। 
  • प्राकृतिक आपदाएं या मौसम की विषम घटनाएँ, फसल की कम पैदावार या कीटों द्वारा फसलों का कीट –  संक्रमण जैसे कारक कृषि उत्पादों की आपूर्ति को कम कर सकता हैं, जिससे उसकी कीमतें बढ़ सकती हैं।
  • कभी – कभी मांग में वृद्धि, जनसंख्या में वृद्धि या उपभोक्ता की खाद्य – प्राथमिकताओं में परिवर्तन होने के कारण भी यदि खाद्य पदार्थों  की आपूर्ति सतत जारी / प्रवाह नहीं रह पाती है तो ऐसी स्थिति में भी कीमतें भी बढ़ सकती हैं।  

किसानों के लिए कृषि उत्पादन में होने वाले लागत में वृद्धि : 

  • कभी – कभी किसानों के लिए कृषि उत्पादन में होने वाली लागत में वृद्धि होने के कारण भी खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ सकती हैं। इसमें ईंधन, उर्वरकों के मूल्य में वृद्धि और श्रम लागत जैसे व्यय भी शामिल होते हैं।

ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि : 

  • कृषि कार्यों में उपयोग होने वाले ऊर्जा की लागत में वृद्धि होने के कारण ,या कभी – कभी  विशेष रूप से ईंधन जैसे – डीजल या पेट्रोल के दामों में वृद्धि होना भी , खाद्य आपूर्ति शृंखला में एक महत्त्वपूर्ण कारक होता है। डीजल , पेट्रोल या तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से खेतों से दुकानों तक खाद्य उत्पादों को लाने के लिए परिवहन लागत में वृद्धि हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं के लिए खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ सकती हैं।

 

मुद्रा विनिमय दर :

  • कभी – कभी मुद्रा की विनिमय दरों में उतार-चढ़ाव खाद्य कीमतों को प्रभावित कर सकता है, खासकर उन देशों के लिए जो आयातित खाद्य पदार्थों पर बहुत अधिक निर्भर होते हैं। कमज़ोर घरेलू मुद्रा आयातित भोजन या खाद्य पदार्थों को और अधिक महंगा बना सकती है, जिससे मुद्रास्फीति में वृद्धि  हो सकती है।

 

व्यापारिक –  नीतियाँ : 

  • राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तरों पर तय होने वाली व्यापारिक नीतियाँ और टैरिफ, आयातित एवं घरेलू स्तर पर उत्पादित खाद्य की कीमतों को प्रभावित कर सकते हैं। किसी भी खाद्य पदार्थों के आयात पर प्रतिबंध से भी उपलब्ध खाद्य उत्पादों की विविधता सीमित हो सकती है और ऐसी परिस्थिति में भी संभावित रूप से कीमतें बढ़ सकती हैं। 

मूल्य नियंत्रण या विनियमों के रूप में सरकारी हस्तक्षेप : 

  • सरकारों द्वारा खाद्य पदार्थों के मामले में नागरिकों को दी जाने वाली सब्सिडी, मूल्य नियंत्रण या विनियमों के रूप में सरकारी हस्तक्षेप खाद्य पदार्थों की कीमतों को  प्रभावित कर सकता है। एक और जहाँ सरकारों द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी खाद्य पदार्थों के उत्पादन की लागत/ मूल्य को कम कर सकती है, वहीं दूसरी ओर सरकारों द्वारा मूल्य नियंत्रण करना मूल्य वृद्धि को सीमित कर सकता है।

जलवायु पैटर्न में दीर्घकालिक परिवर्तन : 

  • जलवायु पैटर्न में दीर्घकालिक परिवर्तन कृषि उत्पादों या खाद्य उत्पादन पर प्रभाव डाल सकते हैं। अधिक और जैसे सूखा या बाढ़ जैसी गंभीर और विषम मौसम की घटनाएँ, फसलों को नुकसान पहुँचा सकती हैं तथा ऐसी परिस्थिति में कृषि पैदावार कम कर सकती हैं, जिससे खाद्य पदार्थों की कीमतें भी बढ़ सकती हैं।

कृषि अनुसंधान और प्रौद्योगिकी में निवेश की आवश्यकता :

  • कृषि क्षेत्र में फसलों की पैदावार क्षमता बढ़ाने एवं पशुधन की उत्पादकता क्षमता को बढ़ाने में तथा उत्पादन लागत में कमी लाने के लिए और संधारणीय कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए कृषि अनुसंधान और प्रौद्योगिकी में निवेश करने की आवश्यकता है।

खाद्य आपूर्ति शृंखलाओं का सुदृढ़ीकरण करने की जरुरत :

  • खाद्य पदार्थों की बर्बादी या भोजन के खराब होने और बर्बादी को कम करने के लिए परिवहन एवं भंडारण के बुनियादी ढाँचे में निवेश करने की अत्यंत जरूरत है।
  • खाद्य पदार्थों की बर्बादी को रोकने को सुनिश्चित करने के लिए वितरण नेटवर्क में सुधार करने की अत्यंत जरूरत है  ताकि भोजन निहित उपभोक्ताओं तक कुशलतापूर्वक पहुँच सके और खाद्य पदार्थों की बर्बादी को रोका जा सके।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और बाज़ार के बीच आपसी तालमेल को बढावा देना  :

  • किसी भी आवश्यक खाद्य पदार्थों पर होने वाली व्यापार बाधाओं और उससे संबंधित शुल्कों को हटाने की अत्यंत आवश्यकता है।
  • खाद्य पदार्थों या खाद्य उत्पादों की सतत एवं स्थिरआपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को अत्यंत सुविधाजनक बनाने की आवश्यकता है, साथ – ही – साथ खाद्य पदार्थों या खाद्य उत्पादों की आपूर्ति को बाधामुक्त बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और बाज़ार के बीच आपसी तालमेल को बढावा देने की अत्यंत जरूरत है। 

जमाखोरी या कालाबाजारी या एकाधिकार शक्ति को कम करना और आपसी प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना :

 

  • भारत में बड़े कृषि – व्यवसाय प्रतिष्ठानों द्वारा बाज़ार पर एकक्षत्र राज स्थापित करने की प्रवृति , बाजार में जमाखोरी या कालाबाजारी और मूल्य में होने वाले हेरफेर को रोकने के लिए बाजार में होने वाले एकाधिकारी व्यापार विरोधी कानून को लागू किए जाने की अत्यंत आवश्यक है ।
  • खाद्य – पदार्थों की कीमतों को प्रतिस्पर्द्धी बनाए रखने के लिए खाद्य – पदार्थों या खाद्य उत्पादों जैसे खाद्य क्षेत्रों में आपसी प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करने की अत्यंत आवश्यकता है।
  • वैश्विक प्राकृतिक एवं राजनीतिक घटनाएँ: भू-राजनीतिक संघर्ष, महामारी एवं व्यापार व्यवधान जैसी वैश्विक घटनाएँ खाद्य – आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर सकती हैं और खाद्य – कीमतों में बढ़ोतरी का कारण बन सकती हैं। उदाहरण के लिए –  कोविड-19 महामारी ने विश्व के कई हिस्सों में खाद्य – उत्पादन और वितरण को बाधित कर दिया था। इस महामारी से सबक सीखते हुए भविष्य में खाद्य – आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित न हो, हमें इस दिशा में भी मार्ग प्रशस्त करने की अत्यंत आवश्यकता है। 

निष्कर्ष / समाधान की राह : 

 

 

 

  • भारत में समावेशी और सतत विकास के लिए मुद्रास्फीति को भारत के नीति – निर्माताओं को उसके लक्ष्य तक सीमित रखना होगा।
  • वर्ष 2024 में देश में होने वाले लोकसभा चुनाव के कारण यदि भारतीय अर्थव्यवस्था को अस्थिरता से बचाना है तो भारत के नीति निर्माताओं को मुद्रास्फीति और भारतीय अर्थव्यवस्था की अस्थिरता के बीच संतुलन बनानी होगी , ताकि आम जनता को महंगाई की मार से बचाया जा सके।
  • वैश्विक प्राकृतिक एवं राजनीतिक घटनाएँ: भू-राजनीतिक संघर्ष, महामारी एवं व्यापार व्यवधान जैसी वैश्विक घटनाएँ खाद्य – आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर सकती हैं और खाद्य – कीमतों में बढ़ोतरी का कारण बन सकती हैं। अतः भारत में आने वाले समय में खाद्य – आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित न हो, हमें इस दिशा में भी मार्ग प्रशस्त करने की अत्यंत आवश्यकता है। 
  • खाद्य पदार्थों की बर्बादी को रोकने को सुनिश्चित करने के लिए वितरण नेटवर्क में सुधार करने की अत्यंत जरूरत है  ताकि भोजन निहित उपभोक्ताओं तक कुशलतापूर्वक पहुँच सके और खाद्य पदार्थों की बर्बादी को रोका जा सके।
  • मुद्रा विनिमय दर आयातित भोजन या खाद्य पदार्थों को और अधिक महंगा बना सकती है, जिससे मुद्रास्फीति में वृद्धि  हो सकती है।

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1 .खुदरा मुद्रास्फीति के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।

  1. खुदरा मुद्रास्फीति  के कारण किसी भी अर्थव्यवस्था में जब खाद्य पदार्थों की मांग और उसकी आपूर्ति के बीच असंतुलन कि स्थिति पैदा होता है, तो खाद्य पदार्थों की कीमतें भी बढ़ने लगती हैं।
  2. CFPI विशिष्ट खाद्य पदार्थों के मूल्य परिवर्तन की निगरानी  करता है जो सामान्यतः घरों में उपभोग किया जाता है।
  3. CPI छह  प्रकार के होते हैं।
  4. जलवायु पैटर्न में दीर्घकालिक परिवर्तन से कृषि उत्पादों या खाद्य उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, बल्कि इससे कृषि क्षेत्र में अधिक पैदावार होती है।

उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ? 

(A) केवल 1, 3 और 4 

(B) केवल 2 और 4 

(C) केवल 1 और 3 

(D) केवल 1 और 2 

उत्तर – (D) 

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1.खुदरा मुद्रास्फीति और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से आप क्या समझते हैं ? किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की स्थिरता के प्रमुख कारणों को रेखांकित करते हुए खुदरा मुद्रास्फीति और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से उत्पन्न प्रभावों की समीक्षा कीजिए।

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