पंचायती व्यवस्था की संवैधानिक व व्यावहारिक स्थिति

पंचायती व्यवस्था की संवैधानिक व व्यावहारिक स्थिति

संदर्भ- हाल ही में तेलंगाना के उपसरपंच ने विकास कार्यों के लिए सरकारी धन में देरी के कारण निजी रूप से बैंक से ऋण लिया और राज्य सरकार द्वारा बिल भुगतान की अत्यधिक देरी और ऋण के बोझ के कारण उसने आत्महत्या कर ली।

भारत में स्थानीय सरकारों (पंचायतों) को संवैधानिक दर्जा प्राप्त होने के बावजूद राज्य सरकार, स्थानीय नौकरशाह के माध्यम से स्थानीय पंचायतों पर नियंत्रण रखती हैं जिससे स्थानीय पंचायतें अपना स्वायत्त रूप से विकास नहीं कर पाती हैं।

पंचायतों की संवैधानिक स्थिति

  • भारत में स्थानीय शासन की नींव 1882 में लॉर्ड रिपन ने रखी।
  • भारत सरकार अधिनियम 1919 द्वारा स्थानीय सरकारों को प्रांतीय विषय के अधीन रखा गया। जिससे अनेक प्रांतों में ग्राम पंचायतों का गठन हुआ। और भारत शासन अधिनियम 1935 ाने पर इसका और अधिक विस्तार हुआ।
  • 1958 में बलवंत राय मेहता समिति की पंचायती व्यवस्था की त्रिस्तरीय प्रणाली की सिफारिश को स्वीकार किया। तथा 1959 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने देश की पहली त्रिस्तरीय पंचायत नागौर, राजस्थान का उद्घाटन किया।
  • वर्ष 1993 में संविधान के 73 वे और 74 वे संशोधनों द्वारा पंचायतों को स्वायत्तता प्राप्त हुई।

संविधान का 73वां संशोधन अधिनियम, 1992

  • संवैधानिक संशोधन 1992 के तहत संविधान में भाग 9(a) जोड़ा गया। जिसमें अनुच्छेद 243 (a) से 243(o) तक नए प्रावधान जोड़े गए।
  • इसके तहत ग्राम सभा, राज्य विधानमण्डल द्वारा बनाए गए विधि या कार्यों को ग्रामसभा में प्रतिपादित करेगी।
  • पंचायतों को त्रिस्तरीय रूप से गठन किया जाएगा- ग्राम स्तर, मध्यवर्ती स्तर(तालुका) व जिला स्तर। पंचायतों का गठन उन राज्यों में किया जाएगा जहाँ राज्य की जनसंख्या 20लाख से कम है।
  • पंचायत स्तर पर सभी ग्राम पंचायतों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से होगा और जिला स्तर पर अप्रत्यक्ष रूप से। पंचायत भंग होने पर 6 माह के भीतर ने पंचायत हेतु चुनावों का प्रावधान।
  • पंचायत में महिलाओं के लिए एक तिहाई स्थान आरक्षित हैं इसके अतिरिक्त अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए भी जनसंख्या के अनुसार आरक्षण प्रदान किया जाता है।
  • प्रांतीय विषय से 29 विषय, जो स्थानीय विकास व कल्याण से संबंधित है,  को पंचायतों में हस्तानांतरित कर दिया गया है। जो 11 वी अनुसूची से संबंधित हैं।
  • भारत के आदिवासी समुदायों को इस संशोधन से दूर रखा गया है।

संविधान का 74 वां संशोधन

  • संविधान का 74 वां संशोधन, शहरी स्थानीय शासन(नगरपालिका) से संबंधित था।
  • शहरी क्षेत्र से तात्पर्य ऐसे इलाके जिनकी जनसंख्या कम से कम 5000 हो, 75 % पुरुष खेती बाड़ी से भिन्न कार्यों से संलग्न हो, जनसंख्या का घनत्व कम से कम 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो।
  • नगरपालिका में ग्राम पंचायत में निहित 73 वे संशोधन के सभी तत्वों को जोड़ा गया है।

ग्राम पंचायतों के राजस्व का स्रोत

  • स्थानीय कर- शहरी क्षेत्रों में 0.24 प्रतिशत का स्थानीय कर (सम्पत्ति संसाधनों से राजस्व) एकत्रित होता है।
  • केंद्र व राज्य सरकारों से सहायता अनुदान- केंद्र व राज्य सरकारों से 4 प्रतिशत का राजस्व प्राप्त होता है जो अधिकतर विवेकाधीन या योजना आधारित धन होता है। 
  • ग्राम पंचायतें अनुदान पर निर्भर होती हैं। और यह अनुदान राजनीतिक व नौकरशाही संबंधों पर निर्भर करते हैं।
  • ग्राम पंचायतें  को केंद्र व राज्य से अधिकतर इतना कम धन प्राप्त होता है कि ग्राम पंचायतों द्वारा किया गया खर्च इससे अधिक होता है। इसलिए पंचायतें अनुदान से प्राप्त धन पर निर्भर होती हैं।

पंचायतों को प्राप्त धन के प्रयोग पर प्रतिबंध-

  •  राज्य सरकारें प्राय: पंचायत निधियों के माध्यम से विभिन्न व्ययों पर खर्च की सीमाएँ लगाती हैं। इसमें रोज़मर्रा की गतिविधियाँ शामिल हो सकती हैं जैसे कि राष्ट्रीय प्रतीकों के पोस्टर खरीदना, गणमान्य व्यक्तियों के लिए जलपान, या राष्ट्रीय त्योहारों पर स्थानीय स्कूल में मिठाइयाँ बाँटना। 
  • लगभग सभी राज्यों में, पंचायत निधियों को खर्च करने के लिए दोहरे प्राधिकरण की व्यवस्था है। सरपंचों के अलावा, भुगतान के संवितरण के लिए नौकरशाही की सहमति की आवश्यकता होती है। सरपंच और पंचायत सचिव, जो खंड विकास अधिकारी (बीडीओ) को रिपोर्ट करते हैं, को पंचायत निधि से भुगतान के लिए जारी किए गए चेक पर सह-हस्ताक्षर करने की आवश्यकता होती है।

पंचायतों की सीमित शक्ति

  • सीमित प्रशासनिक नियंत्रणस्थानीय सर्मचारियों की नियुक्ति व पदच्युत करने की शक्ति जिला या ब्लॉक स्तर पर होती है। ये कर्मचारी पंचायतों को रिपोर्ट करते हैं।
  • सरपंच को पदच्युत करने के प्रावधान- ग्राम पंचायत अधिनयम के अनुसार ग्राम पंचायत केनौकरशाहों या जिला कलेक्टरों को सरपंच के खिलाफ कार्यवाही करने का अधिकार दिया गया है। यह कार्यवाही कदाचार, शक्ति का दुरुपयोग, गबन या जिला कलेक्टर के आदेश की अवमानना करने पर की जा सकती है।

आगे की राह-

  • ग्राम पंचायतों के कानूनों के प्रावधानों की फिर से जाँच करनी चाहिए।
  • पंचायतों के संसाधनों जैसे धन व प्रशासन संबंधी अधिकारों में वृद्धि की जा सकती है।

स्रोत

द हिंदू

https://ncert.nic.in/textbook/pdf/khps208.pdf

Yojna IAS daily current affairs hindi med 21st Jan

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