भारत में उच्चशिक्षा।

भारत में उच्चशिक्षा।

कॉलेजों को स्वायत्तता देने के लिए, यूजीसी दिशानिर्देश जारी करेगा।

संदर्भ- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में की सिफारिशों के अनुरूप कॉलेजों को स्वायत्तता प्रदान करने की प्रक्रिया पर कार्य कर रहा है।

भारत में विश्वविद्यालय- विश्वविद्यालय ऐसी संस्था जिसमें सभी प्रकार की विधाओं में उच्च कोटि की शिक्षा दी जाती थी। और यह किसी विशेष विषय में विशेषज्ञता हासिल करने में सहायक संस्था है। वर्तमान में विश्वविद्यालय कई श्रेणियों में विभाजित है।

  • मानित विश्वविद्यालय, भारत में मानित या डीम्ड विश्वविद्यालय एक मान्यता है जिसे भारत सरकार, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सलाह पर संस्थान को प्रदान करती है। मानित विश्वविद्यालय शिक्षा के किसी विशिष्ट क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाली संस्था है। 
  • निजी विश्वविद्यालय, विभिन्न निजी संस्थाओं व सोसायटी द्वारा संचालित करते हैं। 
  • जबकि सार्वजनिक विश्वविद्यालय वे होते हैं जिन्हें केंद्र या राज्य सरकार द्वारा सहायता मिलती है।
  • स्वायत्त विश्वविद्यालय से तात्पर्य ऐसे विश्वविद्यालयों से हैं जिसे अकादमिक, संगठनात्मक, वित्तीय व कर्मचारी स्वायत्तता प्राप्त हो। वर्तमान में किए गए परिवर्तन के अनुसार प्रारंभ में 10 वर्ष व बाद में संस्था को पुनः 5 साल के लिए स्वायत्तता प्रदान की जाएगी। इसके लिए संस्था के NAAC व NBA के ग्रेड बनाए रखने होंगे।  

विश्वविद्यालय को स्वायत्तता प्राप्त करने पर लाभ 

  • विश्वविद्यालय को नए पाठ्यक्रम व नए विभाग खोलने के लिए यूजीसी की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होगी।
  • इससे शिक्षा में सुधार करने के लिए सृजनात्मक प्रयास करना आसान हो जाएगा।
  • विश्वस्तरीय शिक्षा प्राप्त करने हेतु भारतीयों का विदेशों में पलायन रोकने में सहायक।

इतिहास-प्राचीनकाल में उच्चशिक्षा के केंद्र गुरूकुल हुआ करते थे, उपनिषद काल में परिषदों को उच्च शिक्षा के केंद्र के रूप में देखा जाता है। बौद्ध काल में सिक्षा के सुसंगठित केंद्रों की संरचना हुई। जैसे तक्षशिला,नालंदा, वल्ल्भी व कांची विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में विभिन्न विषय पढ़ाए जाते थे। केवल तक्षशिला में 60 से भी अधिक विषय पढ़ाए जाते थे।

मध्यकाल में मुस्लिम आक्रमणकारियों के भारत में प्रवेश के बाद मदरसों का निर्माण किया जाने लगा। इस समय लाहौर, दिल्ली, लखनऊ, जौनपुर, अजमेर, बीदर आदि स्थानों के मदरसे प्रसिद्ध थे। ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में कलकत्ता मदरसा और बनारस संस्कृत कॉलेज उच्च शिक्षा केंद्र स्थापित किए गए। 1854 में वुड के घोषणापत्र के अनुसार कलकत्ता विश्वविद्यालय की स्थापना की घोषणा की गई। कलकत्ता विश्वविद्यालय के बाद बंबई व मद्रास में भी विश्वविद्यालय स्थापित किए गए। इनके बाद लगभग समस्त भारत में उच्च शिक्षा केंद्र स्थापित किए गए। और स्वतंत्रता प्राप्ति के समय उच्च शिक्षा में छात्रों की संख्या 241794 हो गई।

विश्वविद्यालयों का संवैधानिक इतिहास-

  • भारतीय विश्वविद्यालयों के सुधार हेतु लॉर्ड कर्जन ने टॉमस रैले की अध्यक्षता में 1902 में भारतीय विश्वविद्यालय आयोग की स्थापना की।आयोग ने विश्वविद्यालय की स्थिति में सुधार करने व उनकी कार्यक्षमता बढ़ाने हेतु सुधार किए। 1902 ने शिक्षण संश्थाओं के रूप में सीनेट, सिंडीकेट व फैकल्टी को मान्यता देने की संस्तुती की।
  • 1902 के आयोग की सिफारिश पर भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम 1904 पारित किया गया। सीनेट द्वारा पास किए गए प्रस्तावों पर सीनेट का अधिकार बढ़ा दिया गया।इसके अनुसार विश्वविद्यालयों सहित अशासकीय संस्थाओं पर सरकार का नियंत्रण बढ़ा दिया गया। 
  • कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग 1917– इसे सैडलर कमीशन भी कहा जाता है। विश्वविद्यालयों में आवश्यकता से अधिक राजकीय हस्तक्षेप को कम करने तथा विश्वविद्यालयों से संबंधित महाविद्यालयों और विश्वविद्यालय क्षेत्र के बाहर के महाविद्यालयों की स्थिति को अलग अलग निर्धारित करने पर जोर दिया। इस आयोग की स्थापना मुख्यतः कलकत्ता विश्वविद्यालय की जांच करने तथा शिक्षा संबंधी समस्याओं को सुलझाने के लिए किया गया।  
  • राधाकृष्णन आयोग- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 1948 में सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय आयोग की स्थापना की गई। इसकी नियुक्ति वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की जांच करने तथा तत्काल स्थिति का पता लगाकर भारत सरकार को सुझाव देने के लिए की गई थी। इसमें शिक्षा के लक्ष्य, शिक्षा स्तर तथा शिक्षा संकाय संबंधी सुक्षाव दिए गए। इसके साथा ही शिक्षा को समवर्ती सूची में शामिल कर केंद्र व राज्य की भूमिका तय करने तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग स्थापित करने का सुझाव भी दिया गया।
  • 1948 के आयोग की सिफारिशों के परिणामस्वरूप 1976 में संविधान संशोधन-42 में शिक्षा को समवर्ती सूची में शामिल किया गया।
  • 1964 में भारत की शिक्षा को नई दिशा देने के लिए एक नए आयोग का गठन किया गया जिसे कोठारी आयोग कहा जाता है। इसमें 3 या उससे अधिक का स्नातक अवधि का पाठ्यक्रम हो और इसके बाद विविध अवधि के पाठ्यक्रम का सुझाव दिया गया। तथा स्नात्तकोत्तर पाठ्यक्रम की शिक्षा को मातृभाषा में दी जाने का सुझाव भी इसमें शामिल था।
  • 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा की गई,इसमे शिक्षा को प्राथमिक शिक्षा, उच्च प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा, उच्च माध्यमिक शिक्षा तथा उच्च शिक्षा में विभाजित किया गया।
  • वर्तमान में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में 2020 में पारित हुई और इसे 2040 तक लागू करने का लक्ष्य रखा गया है। इसमें विश्वविद्यालयी स्तर पर छात्रों को मातृभाषा, कला, खेलकूद के लिए प्रोत्साहित किया गया है। तथा एक समय में अनेक विषयों को पढ़ने की सुविधा प्रदान करती है। शिक्षा नीति, विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास पर केंद्रित की गई है।

सतत विकास लक्ष्य व शिक्षा- संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2015 में वैश्विक शांति व सम्पन्नता के लिए 17 सतत विकास लक्ष्य निर्धारित किए गए, जिन्हें प्राप्त करने के लिए समय सीमा 2030 तक निर्धारित की गई है। सतत विकास लक्ष्यों में चौथा लक्ष्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को दिया गया है। जिससे वैश्विक नागरिकों का सर्वांगीण विकास हो सके।

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से तात्पर्य –

  • सभी महिलाओं व पुरूषों को सस्ती व अच्छी तकनीकि, व्यावसायिक व तृतीयक शिक्षा के लिए समान रूप से पहुँच।
  • सभी स्तरों के विकलांग व कमजोर परिस्थिति के छात्र, महिलाओं की पहुँच।
  • 2030 तक सभी स्तर के विद्यार्थियों द्वारा मुफ्त प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करना।
  •  इसके साथ ही परामर्श योजना भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में सहायक सिद्ध हो सकेगी। परामर्श योजना के तहत NAAC द्वारा मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं की शैक्षणिक दशा के सुधार हेतु परामर्श दिया जाएगा।

सतत विकास लक्ष्यों को पूर्ण करने के लिए 2020 की शिक्षा नीति सहायक सिद्ध हो सकती है।

स्रोत-

https://indianexpress.com/article/upsc-current-affairs/upsc-key-october-10-2022-why-you-should-read-online-gaming-or-cultural-imperialism-or-trade-for-upsc-cse-8200981/

राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यानयन परिषद (NAAC)

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