भूमि हस्तानांतरण विरोधी गोवा विधेयक 2023

भूमि हस्तानांतरण विरोधी गोवा विधेयक 2023

भूमि हस्तानांतरण विरोधी गोवा विधेयक 2023

संदर्भ- हाल ही में गोवा विधानसभा में कृषि भूमि विधेयक 2023 के बिक्री अथवा हस्तानांतरण में प्रतिबंध लगाया गया। जिसका विपक्ष व व्यवसायियों द्वारा विरोध किया जा रहा है। 

कृषि भूमि- कृषि भूमि उस भूमि को कहा जा सकता है जिसमें किसी भी प्रकार की फसल उगायी जाती है इसमें उत्पन्न फसल का प्रयोग किसान अपने निर्वहन या व्यापार के लिए कर सकता है।  

कृषि भूमि विधेयक 2023

कोई भी व्यक्ति जो कृषि भूमि का मालिक है या भूमि उसके कब्जे में है, वह ऐसी भूमि को बिक्री, उपहार, विनिमय, पट्टे या हस्तांतरण के किसी अन्य तरीके से, कृषक के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के पक्ष में हस्तांतरित नहीं करेगा। विधेयक में कृषि भूमि को धान की खेती के रूप में परिभाषित किया है।  

भूमि हस्तानांतरण हेतु शर्तेंक्षेत्र का कलेक्टर, गैर कृषकों को कुछ विशेष परिस्थिति में भूमि का आबंटन करने पर विचार सकता है। जैसे- 

  • जब किसी उद्योग को उद्योग के संचालन के लिए कृषि भूमि की आवश्कता हो। 
  • यदि किसी सहकारी कृषक समिति को कृषि भूमि की आवश्यकता होती है।
  • यदि कोई गैर कृषक व्यक्तिगत रूप से कृषि करनी चाहता है। 

विधेयक के विरुद्ध हस्तानांतरण होने पर- 

  • यदि गैर कृषक द्वारा कृषि हेतु खरीदी गई भूमि पर कृषि करना बंद कर दिया जाता है तो 3 साल बाद वह भूमि पुनः अपने पूर्व अधिकारी के पास जा सकती है।
  • विधेयक के किसी भी अनुबंध के उल्लंघन पर भूमि हस्तानांतरण अवैध माना जाएगा।

विधेयक के अपवाद- बिल के अतिरिक्त भी कुछ अन्य परिस्थितियों में भूमि के कृषि से विलग उपयोग या फिर भूमि का हस्तानांतरण संभव हो सकता है।

  • ऋण प्राप्त करने के लिए कृषि भूमि को गिरवी पर रखना।
  • विरासत में प्राप्त कृषि भूमि के अधिग्रहण का अधिकार 
  • कानून के संचालन द्वारा कृषि भूमि का हस्तानांतरण

विधेयक की आवश्यकता

उपजाउ भूमि का दुरुपयोग- भारत हमेशा से कृषि प्रधान देश रहा है इसका कारण भारत की उपजाउ भूमि है, इसी प्रकार गोवा भी कृषि प्रधान राज्य है जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर आधारित राज्य है। अतः गोवा की कृषि को सुरक्षित रखना उसकी आर्थिक स्थिति को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।   

प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण- समुद्र तट पर बसे इस राज्य में पारिस्थितिकी की विविध प्रजातियाँ पनपती है। भूमि के गैर कृषि आधारित उपयोग का अर्थ है कि वे गोवा में भी कंक्रीट के जंगलों का निर्माण होगा। जिससे गोवा की तटीय भूमि में उपस्थित पारिस्थितिकी नष्ट हो सकती है। अतः भूमि को प्राकृतिक रूप से प्रयोग करना अधिक आवश्यक है।

  • पर्यावरण वन व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के कार्यकरण समूह ने पश्चिमी घाट के राज्यों जिनमें गोवा  भी शामिल है को पारिस्थितिकी संवेदी क्षेत्र के रूप में स्वीकार किया है। इसके ्नुसार इन क्षे6ों में परियोजना वाले क्रियाकलाप विनाशकारी हो सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट के 2009 के फैसले के अनुसार कृषि क्षेत्र वाली भूमि को किसी गैर कृषि वाली भूमि के लोगों को कृषि क्षेत्र की वसीयत देना गैरकानूनी है। 

धान की खेती वाली भूमि की सुरक्षा की आवश्यकता-  गोवा की भूमि में विभिन्न जल स्रोत धान की फसल के लिए जल उपलब्ध कराते हैं। जो धान की खेती के लिए अनुकूल है। गोवा में कृषि का सर्वाधिक क्षेत्र धान की फसल द्वारा ही कवर किया जाता है। 

  • स्वतंत्रता के समय गोवा की लगभग 70% आबादी धान की खेती पर निर्भर थी। 1960-61 में यह क्षेत्र लगभग 50302 हेक्टेयर था। इसके द्वारा 79948 टन धान का उत्पादन किया जाता था। किंतु 2014-15 में धान भूमि क्षेत्र लगभग 41970 हेक्टेयर ही रह गया, जिसमें सुधार की आवश्यकता है। 
  • धान की खेती इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि वह गोवा में रबी व खरीफ दोनों समय उगायी जाती है। नदमुख वाली भूमि को खजान भूमि कहा जाता है। खजान भूमि में मानसूनी धान की फसल का उत्पादन होता है इसके बाद रबी की सब्जियों के उत्पादन भी इस भूमि पर किया जाता है। अतः धान के साथ साथ इन फसलों से राज्य को होने वाली आय भी प्रभावित होगी। 

विधेयक के विरोधी तर्क 

  • विधेयक में कलेक्टरों को गैर कृषकों को भूमि खरीद की अनुमति देनी शक्ति दी गई है परिणामस्वरूप कलेक्टरों पर भूमि हस्तानांतरण को वैध करने के लिए दबाव बनाया जा सकता है। यह कलेक्टरों को अधिकार का दुरुपयोग करने के लिए प्रेरित कर सकता है।
  • यह विधेयक राज्य के बाहर के लोगों को यहां बसने के लिए प्रेरित करेगा और फार्म कल्चर को बढ़ावा देगा। 
  • केवल धान की भूमि का उल्लेख करने के कारण इस विधेयक द्वारा अन्य फसलों वाली भूमि के लिए कोई प्रावधान नहीं सुझाया गया है, अतः इसके द्वारा समस्त भूमि सुधार कैसे हो सकता है। 
  • किसानों को धान से अन्य फसलों की तुलना में कम लाभ और आधुनिक औद्योगिकीकरण के दौर में भूमि से अधिक लाभ कमाने की लालसा के कारण भी किसान इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं। 

आगे की राह

  • पर्यावरण व पारिस्थितिकी को बचाने के लिए यह विधेयक एक रोकथाम के रूप में कार्य कर सकता है।
  • उपजाउ भूमि व पारिस्थितिकी तंत्र जो एक प्राकृतिक संसाधन है उसको नष्ट करने के प्रभावों जैसे के बारे में स्थानीय लोगों को अवगत कराया जा सकता है। 
  • किसानों को धान की फसल का उचित मूल्य प्रदान करने की नीति अपनाई जा सकती है।
  • फार्म कल्चर में अधिकांश रूप से कीटनाशकों का प्रयोग होता है जिसके कारण कई अन्य जमीन के अंदर उपस्थित जीव भी नष्ट हो जाते हैं। अतः कृषकों को जेविक कृषि करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। तथा जैविक कृषि युक्त उत्पादों को बाजार में अधिक मूल्य प्रदान किया जा सकता है। 

संदर्भ

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