महिला श्रम बल भागीदारी में जातीय और लैंगिक अंतर – विभाजन

महिला श्रम बल भागीदारी में जातीय और लैंगिक अंतर – विभाजन

स्त्रोत – द हिन्दू एवं पीआईबी। 

सामान्य अध्ययन – सामाजिक न्याय, लैंगिक समानता,  वैश्विक लिंग अंतर सूचकांक,  महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण रिपोर्ट, समान काम – समान वेतन।  

ख़बरों में क्यों ? 

  • हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2023 में 146 देशों में भारत 127 वें स्थान पर है। वर्ष 2022 में भारत 135वें स्थान पर था। अतः वैश्विक लिंग अंतर सूचकांक ( Global Gender Gap Index) 2023 भारत में लैंगिक आधार पर महिला श्रम बल रैंकिंग में सुधार का संकेत देता है।
  • श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी के मामले में विकासशील देशों और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में व्यापक अंतर नजर आता है। यह अंतर पुरुषों की भागीदारी में अंतर की तुलना में कहीं अधिक व्यापक है।
  • विश्व के अधिकांश विकासशील देशों की तुलना में भारत की स्थिति खराब है। जबकि भारत जैसे देश में महिला श्रम बल भागीदारी को सही मायनों में अर्थव्यवस्था के विकास का इंजन कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। महिला श्रम बल भागीदारी दर की स्थिति को देखते हुए देश के तीव्र विकास कर सकने की क्षमता का संकेत प्राप्त होता है।
  • भारत के सामाजिक मानदंड ऐसे हैं कि महिलाओं से परिवार की देखभाल और बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी लेने की अपेक्षा की जाती है। यह रूढ़िवादिता महिलाओं की श्रम शक्ति की भागीदारी में एक महत्वपूर्ण बाधा है। हालांकि श्रम बाजार में महिलाओं की भागीदारी और वृहद् विकास परिणाम के बीच का संबंध बेहद जटिल है। श्रम बल में पर्याप्त हिस्सेदारी के बावजूद देश में महिला श्रमिकों की स्थिति दयनीय है। इसमें सुधार करने के लिए आवश्यक उपायों की जरुरत है। 

श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि के प्रमुख कारण : 

  • भारत सरकार के अनुसार देश में महिला श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) पहले के मुकाबले बढ़ी है। केंद्र सरकार ने कहा कि देश के श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी 4.2 प्रतिशत बढ़कर 37 प्रतिशत हो गई है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, महिला श्रम बल भागीदारी दर 2018-19 में बढ़कर 24.5 प्रतिशत हो गई थी जो 2017-18 में 23.3 प्रतिशत थी।
  • वर्ष 2019-20 में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार महिला श्रम बल भागीदारी दर 30 प्रतिशत थी जो 2020-21 में बढ़कर 32.5 प्रतिशत हो गई। यह दर 2021-22 में 32.8 प्रतिशत थी जो 2022-23 में बढ़कर 37 प्रतिशत हो गई। मंत्रालय ने कहा कि 09 अक्टूबर, 2023 को सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण रिपोर्ट 2022-23 से पता चलता है कि देश में महिला श्रम बल भागीदारी दर 2023 में 4.2 प्रतिशत बढ़कर 37 प्रतिशत हो गई है।

महिला सशक्‍तिकरण की दिशा में अग्रसर : 

  • महिला श्रम बल भागीदारी दर में यह महत्वपूर्ण प्रगति  महिलाओं के दीर्घकालिक सामाजिक – आर्थिक और राजनीतिक विकास के उद्देश्य से की गई नीतिगत पहलों से महिला सशक्‍तिकरण सुनिश्चित करने के सरकार के निर्णायक कार्यक्रम का परिणाम है। सरकार की पहल महिलाओं के जीवनचक्र तक फैली हुई है, जिसमें लड़कियों की शिक्षा, कौशल विकास, उद्यमिता सुविधा और कार्यस्थल में सुरक्षा के लिए बड़े पैमाने पर पहल शामिल हैं। इन क्षेत्रों में नीतियां और कानून सरकार के ‘महिला – नेतृत्व वाले विकास’ एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं।

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण क्या है ?

  • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने अप्रैल 2017 में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण की शुरुआत की थी। इसका मुख्य उद्देश्य, ‘वर्तमान साप्ताहिक स्थिति’ (सीडब्लूएस ) में केवल शहरी क्षेत्रों के लिए तीन माह के अल्‍पकालिक अंतराल पर प्रमुख रोज़गार और श्रमिक – जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर, बेरोज़गारी दर का अनुमान लगाना, प्रतिवर्ष ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में सामान्य स्थिति (पीएस+एसएस) और सीडब्लूएस दोनों में रोज़गार एवं बेरोज़गारी संकेतकों का अनुमान लगाना हैं।

श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि : 

  • श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी सीधे रूप से आर्थिक विकास से संबंधित है। जब महिला आबादी के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से का उपयोग कम हो जाता है तो इसके परिणामस्वरूप संभावित उत्पादकता और आर्थिक उत्पादन का नुकसान होता है। श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि होने से उच्च सकल घरेलू उत्पाद और समग्र आर्थिक समृद्धि में योगदान हो सकता है।

गरीबी रेखा से बाहर निकालने में मददगार  :

  • महिला सशक्‍तिकरण सुनिश्चित करने के सरकार के निर्णायक कार्यक्रम से महिलाओं को आय-अर्जित करने के अवसरों तक पहुँच प्रदान करने से यह उनके परिवारों को गरीबी रेखा से बाहर निकलने में मदद कर सकती है जिससे उनक्ला जीवन – स्तर बेहतर हो सकता है तथा उनके परिवारों की स्थिति में सुधार हो सकता है।
  • महिलाओं की श्रम आपूर्ति से उनकी घरेलू आय बढ़ती है, जिससे उन परिवारों को गरीबी से बचने और वस्तुओं और सेवाओं की खपत बढ़ाने में मदद मिलती है।

भारत में श्रम बल में महिलाओं की कम भागीदारी के प्रमुख कारण : 

भारतीय समाज का पितृसत्तात्मक स्वरुप : 

  • भारतीय समाज की सामाजिक व्यवस्था का स्वरुप पितृसत्तात्मक है। भारतीय समाज में अपनी पुरातन और  गहरी जड़ें जमा चुकी पितृसत्तात्मक व्यवस्था और पारंपरिक लैंगिक भूमिकाएं अक्सर महिलाओं की शिक्षा और रोजगार के अवसरों तक पहुंच को सीमित कर देती हैं ।
  • भारतीय समाज की सामाजिक अपेक्षाएँ महिलाओं को एक कुशल गृहिणी के रूप में और परिवारजनों की देखभालकर्ता के रूप में महिलाओं देखती हैं, जिससे श्रम बल में उनकी सक्रिय भागीदारी कम और  हतोत्साहित करने वाली होती  है।

लैंगिक पहचान के आधार पर  वेतन में अंतर :

  • भारत में महिलाओं को अक्सर लैंगिक पहचान के आधार पर  समान काम के लिए समान वेतन नहीं प्रदान किया जाता है। भारत में महिलाओं को अक्सर पुरुषों की तुलना में वेतन असमानताओं का सामना करना पड़ता है।
  • विश्व असमानता रिपोर्ट, 2022 के अनुसार , भारत में जहाँ पुरुषों को 82% श्रम आधारित कार्य द्वारा आय प्राप्त हुई थी, वहीँ  महिलाओं में केवल 18% महिलाएं ही कामगार की श्रेणी में थीं।
  • समान काम के लिए समान वेतन का नहीं मिलना और वेतन में यह अंतर महिलाओं को औपचारिक रोजगार के अवसर तलाशने में हतोत्साहित करता है।

घरेलू काम का बोझ और अवैतनिक देखभाल कार्य :

  • भारत में महिलाओं को अक्सर घरेलू काम का बोझ और अवैतनिक देखभाल कार्य करना पड़ता है जिसका सामाजिक प्रभाव  महिलाओं पर असंगत और असमानतामूलक रूप से पड़ता है। फलतः  भारत में महिलाओं को भुगतान वाले रोजगार के लिए उनका समय और ऊर्जा काफी हद तक सीमित हो जाती है।
  • भारत में विवाहित महिलाएं घरेलू काम और अवैतनिक देखभाल वाले कार्यों में प्रति दिन औसतन रूप से  7 घंटे से अधिक समय बिताती हैं, जबकि भारत में पुरुष घरेलू कार्यों के लिए केवल औसतन रूप से 3 घंटे से भी कम समय बिताते हैं।
  • भारत में घरेलू जिम्मेदारियों में महत्वपूर्ण लैंगिक असमानता पैदा होने की इस प्रवृत्ति का मुख्य कारक आय स्तरों और जाति समूहों में सुसंगत है , जिससे लैंगिक असमानता पैदा होती है। 
  • भारत में घरेलू कार्यों के प्रति महिलाओं की जिम्मेदारियों का यह असमान वितरण श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी में एक महत्वपूर्ण बाधा है।

महिलाओं के प्रति सांस्कृतिक और सामाजिक कारक :

  • भारत के कुछ समाजों और कुछ समुदायों में, घर से बाहर काम करने वाली महिलाओं के चरित्र और यौनिक संबंधों के प्रति बदचलनता से जोड़ कर देखने की प्रवृति है। फलतः महिलाओं से जुड़े  यौन संबंध रुपी कलंक या प्रतिरोध भारत में महिलाओं की श्रम बल की भागीदारी दर को कम कर देती है।

महिला श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर)  के आँकड़े :

  • भारत में कक्षा 10 में लड़कियों की नामांकन दर में वृद्धि के बावजूद , पिछले दो दशकों में भारत की महिला महिला श्रम बल भागीदारी दर 30% से घटकर 24% हो गई है ।
  • भारत में शिक्षित महिला हो या अशिक्षित महिला. साक्षर हों या निरक्षर महिलाएं सभी महिलाओं कको घरेलू काम का बोझ महिला एलएफपीआर को कम करने में योगदान देने वाला एक प्रमुख कारक है।
  • दक्षिण एशियाई देशों और ब्रिक्स देशों की तुलना में भी भारत की महिला एलएफपीआर (24%) सबसे कम है
  • विश्व में सर्वाधिक आबादी वाला देश चीन में भी मात्र  61%  महिला ही महिला एलएफपीआर में शामिल है।
  • जो महिलाएं श्रम बल में नहीं हैं, वे प्रतिदिन औसतन 457 मिनट (7.5 घंटे) अवैतनिक घरेलू/देखभाल कार्य पर सबसे अधिक समय व्यतीत करती हैं ।
  • कामकाजी या नौकरीपेशा महिलाएं इस तरह के कामों में प्रति दिन 348 मिनट (5.8 घंटे) खर्च करती हैं, जिससे उनके भुगतान वाले काम में संलग्न होने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है ।

आर्थिक विकास में सहायक :

  • श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी सीधे उनकी आर्थिक विकास से जुड़ी है । जब महिला आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कम या अल्प उपयोग में रहता है, तो इसके परिणामस्वरूप संभावित उत्पादकता और आर्थिक उत्पादन का नुकसान होता है ।
  • महिलाओं की श्रम बल भागीदारी में वृद्धि उच्च सकल घरेलू उत्पाद (सकल घरेलू उत्पाद) और समग्र आर्थिक समृद्धि में योगदान कर सकती है।

गरीबी मिटाने में सहायक :

  • जब महिलाओं को आय-सृजन के अवसरों तक पहुंच मिलती है, तो यह उन परिवारों को गरीबी से बाहर निकाल सकती है, जिससे उनका जीवन स्तर बेहतर हो सकता है और उनकी परिवारों में  खुशहाली आ सकती है ।

शिक्षा और स्वास्थ्य परिणामों पर सकारात्मक प्रभाव एवं मानव पूंजी विकास में सहायक :

  • आर्थिक रूप से सक्षम, शिक्षित और आत्मनिर्भर महिलाएं भारतीय समाज में अपने बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य परिणामों पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं , जिससे उन्हें पीढ़ी – दर – पीढ़ी लाभ मिलता है।

लैंगिक समानता और सशक्तिकरण :

  • श्रम बल में महिलाओं की उच्च भागीदारी पारंपरिक लिंग भूमिकाओं और मानदंडों को चुनौती दे सकती है , जिससे लैंगिक समानता को बढ़ावा मिल सकता है।
  • आर्थिक सशक्तिकरण महिलाओं को अपने जीवन, निर्णय लेने की शक्ति और स्वायत्तता पर अधिक नियंत्रण रखने में सक्षम बनाता है।

जनसंख्या वृद्धि को रोकने और प्रजनन क्षमता दर को कम करने में सहायक  :  

  • श्रम बल दर में महिलाओं की भागीदारी और इसमें वृद्धि होने से यह जनसख्या वृद्धि को रोकने में भी सहायक है। जैसे-जैसे महिलाओं की श्रम शक्ति में भागीदारी बढ़ती है, वैसे – वैसे प्रजनन दर में भी गिरावट आती है। यह घटना, जिसे “प्रजनन परिवर्तन” के रूप में जाना जाता है, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और परिवार नियोजन तक बेहतर पहुंच से जुड़ी है।

घरेलू और लैंगिक हिंसा में कमी :

  • महिलाओं में आर्थिक सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता बढ़ने से  घरेलू एवं लैंगिक आधार पर होने वाली हिंसा में भी कमी आती है और महिला अपने आप को  स्वतंत्र, सबल और आत्मनिर्भर बना पाती हैं । 

श्रम बाजार के असंतुलन को दूर करने में सहायक :

  • कुशल एवं कौशलयुक्त कामगारों की कमी और श्रम बाजार के असंतुलन को दूर करने में श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी दर बढ़ाना सहायक है, जिससे उचित प्रतिभा और संसाधनों का कुशलतापूर्वक आवंटन सुनिश्चित हो सकता है।

महिला सशक्तिकरण की दिशा में सरकारी पहल :

  • वन स्टॉप सेंटर योजना
  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना
  • महिला शक्ति केंद्र (एमएसके)
  • स्वाधार गृह
  • नारी शक्ति पुरस्कार
  • महिला पुलिस स्वयंसेवक
  • निर्भया फंड. आदि

निष्कर्ष / समस्या का समाधान : 

  • महिलाओं द्वारा किए जाने वाले औपचारिक और अनौपचारिक सभी प्रकार के कार्यों के व्यापक मूल्यांकन को मान्यता देनी चाहिए। लैंगिक समानता पर चर्चा का मुख्य उद्देश्य महिलाओं के जीवन – स्तर में सुधार और महिला सशक्तिकरण पर आधारित होनी चाहिए। 
  • महिलाओं के जीवन से जुड़ा हुआ कोई भी नीतिगत समाधान महिलाओं की अपनी सांस्कृतिक संदर्भ में और उनकी स्वायत्तता बढ़ाने एवं उनके जीवन के लचीले कार्य विकल्पों को ध्यान में रखते हुए सुधारात्मक प्रयास किया जाना चाहिए।
  • किसी भी समाज के  सामाजिक प्रगति और विकास के  एक महत्वपूर्ण करक के रूप में महिलाओं की श्रम शक्ति में उच्चतर भागीदारी को बढ़ावा देना और समर्थन करना चाहिए , क्योंकि महिला सशक्तिकरण केवल लैंगिक समानता का मामला भर नहीं है, अपितु यह सामाजिक समानता और महिलाओं के लिए उनकी इंसानी पहचान से भी जुड़ा हुआ मुद्दा है।
  • किसी भी राष्ट्र या समाज के आर्थिक विकास, के लिए, उसकी गरीबी में कमी लाने के लिए और बेहतर मानव पूंजी के साथ – ही – साथ  अधिक समावेशी और न्यायसंगत समाज  के निर्माण हेतु जिससे सम्पूर्ण समुदायों को लाभ मिल सकता  हैं, के लिए  कार्यबल में महिलाओं की पूरी क्षमता का उपयोग करना चाहिए , जिससे एक समावेशी, न्यायसंगत  और  समानतामूलक समाज और राष्ट्र निर्माण की राह प्रशस्त हो सके।

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

Q. 1 .  ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2023 के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।

  1. वैश्विक लिंग अंतर सूचकांक को विश्व बैंक के महिला सशक्तिकरण मंत्रालय द्वारा जारी किया जाता है
  2.  वैश्विक लिंग अंतर सूचकांक 2023 के अनुसार भारत 146  देशों में 96वें  स्थान पर है, जबकि वर्ष 2022 में भारत का रैंक 113वें स्थान पर था
  3. भारत में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण रिपोर्ट सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी किया जाता है।
  4. भारत के अधिकांश समाज में मातृसत्तात्मक स्वरुप है,  इसलिए भारत में श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी सर्वाधिक है। 

उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ? 

(A) केवल 1, 2 और 3

(B) केवल 2, 3 और 4 

(C )  केवल 1 और 4 

(D) केवल 3 

उत्तर – (D)

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q. 1 .भारत में श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि के विभिन्न पहलूओं को रेखांकित करते हुए चर्चा कीजिए कि यह भारत में महिला सशक्तिकरण की दिशा में किस तरह ‘ मिल का पत्थर ’  साबित हो रहा है ?  

 

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