रत्नागिरि तेल रिफायनरी और पेट्रोग्लिफ्स

रत्नागिरि तेल रिफायनरी और पेट्रोग्लिफ्स

रत्नागिरि तेल रिफायनरी और पेट्रोग्लिफ्स

संदर्भ- महाराष्ट्र के रत्नागिरि में लगभग 20000 वर्ष पुराने रॉक आर्ट हैं जिनके संरक्षण के लिए इन्हें यूनेस्को की विश्व विरासत की अस्थायी सूची में रखा गया है, रत्नागिरि क्षेत्र को तेल रिफायनरी के एक प्रोजैक्ट के लिए चुना गया था, ऐतिहासिक विरासत रॉक आर्ट के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए रिफायनरी के लिए यह स्थान को निरस्त कर दिया गया।

रत्नागिरि तेल रिफायनरी,

  • रत्नागिरि भारत के महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले के बारसू गांव में स्थित है। यह क्षेत्र पश्चिम में सह्याद्री पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा हुआ है। 
  • देश की तेल विपणन कंपनियों द्वारा देश की सबसे बड़ी परियोजना रत्नागिरि रिफायनरी एंड पैट्रोकैमिकल तैयार की जा रही थी।
  • इसका गठन आइओसीएल, एचपीसीएल व बीपीसीएल द्वारा संयुक्त रूप से 2017 में किया गया। जिनकी भागीदारी 50:25:25 निश्चित की गई थी।
  • परियोजना की लक्ष्य क्षमता 60 एमएमटीपीए रखी गई थी।

पेट्रोग्लिफ्स

  • पेट्रोग्लिफ्स एक ग्रीक शब्द है जो दो शब्दों से मिलकर बना है पेट्रा और ग्लाइफिन, पेट्रा का अर्थ होता है पत्थर और ग्लाइफिन का अर्थ होता है नक्काशी करना। अतः पत्थर पर की गई चित्रात्मक नक्काशियों को पेट्रोग्लिफ्स या शैल चित्र कहा जाता है। 
  • पेट्रोग्विफ्स, जियोग्लिफ्स रॉक कला का एक रूप है, जो जमीन पर चट्टान की सतह के हिस्से को काटकर, उठाकर, तराश कर या घिसकर तैयार की गई छवियां होती हैं।
  • शैल चित्र पत्थरो या चट्टानों को पत्थर, छेनी या हथौड़ी की सहायता से उत्कीर्ण कर बनाए जाते हैं।

रत्नागिरि के पेट्रोग्लिफ-

  • यह पेट्रोग्लिफ लगभग 20000 वर्ष का इतिहास समेटे हुए हैं। क्योंकि इससे पहले इस क्षेत्र से पाषाणकालीन कोई भी ऐतिहासिक तथ्य या साक्ष्य उपलब्ध नहीं थे इसलिए रत्नागिरि के पेट्रोग्लिफ ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
  • इन्हें मध्यपाषाणकाल में रखा जाता है। क्योंकि इन पेट्रोग्लिफ की शैली मध्यपाषाणकाल के औजारों की शैली से समानता रखती है। यहां की पेट्रोग्लिफ शैली को कटल शिल्प के रूप में भी जाना जाता है।
  • रत्नागिरी से 25 किमी की दूरी पर कशेली गांव में पाषाणकालीन औजार भी मिले है, जो चित्रों की प्राचीनता के दृष्टिकोण को दृढ़ करते हैं।
  • इन शैलचित्रों में जानवरों व जलीय जीवन, शिकार संग्रह आदि के चित्र मिलते हैं किंतु लेखन, अर्थव्यवस्था व रहन सहन के कोई तत्व मौजूद नहीं हैं, जिससे यह शैलचित्र निर्माता एक खानाबदोश या आदिम जनजाति जान पड़ती है।
  • रत्नागिरी के 70 से अधिक स्थानों से दरियाई घोड़ा, गैंटा, देवी की आकृति, दो बाघों के साथ खड़े एक व्यक्ति की आकृति आदि 1500 चित्र प्राप्त हो चुके हैं।

रत्नागिरि के पैट्रोग्लिफ्स के संरक्षण  के लिए इन्हें यूनेस्को की अस्थायी सूची में जोड़ा गया है, यूनेस्को की विश्व विरासत सूची की सम्पूर्ण प्रक्रिया के बाद ही इसका स्थायी सूची में नामांकन हो सकता है। 

  • यूनेस्को की अस्थायी सूची में रत्नागिरि के सात स्थलों उक्शी, जम्भरुन, काशेली, रुंधेवाली, देवीहसोल, बारसू, और देवाचे गोठाने, सिंधुदुर्ग जिले के कुडोपी गांव और गोआ में पनसाइमोलमें नौ साइट्स को स्थान दिया गया है।
  • हाल ही में इनके संरक्षण को ध्यान में रखते हुए  तेल रिफायनरी प्रोजैक्ट को निरस्त कर दिया गया। 

प्रोजैक्ट निरस्त करने के कारण-

  • स्थानीय निवासियों की भूमि अधिग्रहण का संकट
  • पर्यावरण पर दुष्प्रभाव
  • प्रोजैक्ट में होने वाले रासायनिक प्रयोगों से पैट्रोग्लिफ के नष्ट होने की सम्भावना।

आगे की राह-

  • किसी भी परियोजना में भूमि आबंटन से पहले सम्पूर्ण सर्वेक्षण करना चाहिए।
  • पेट्रोग्लिफ्स एक वैश्विक सम्पत्ति है जिसे स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है। इनके संरक्षण के लिए ऐसे स्थानों को एक निश्चित सीमा तक औद्योगिक क्षेत्र से दूर रखना चाहिए। 

स्रोत

Indian Express

The Hindu

https://indianexpress.com/article/cities/mumbai/petroglyph-found-in-konkan-added-in-unesco-heritage-sites-tentative-list-7856932/

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