राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम NSA

राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम NSA

राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम NSA

संदर्भ- हाल ही में पंजाब सरकार ने पंजाब व हरियाणा के उच्च न्यायालय को सूचित किया कि अमृतपाल सिंह के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून NSA लागू किया गया है। 

अमृतपाल सिंह, जनरल सिंह भिंडरावाले के अनुयायी हैं इन्हें भिंडरावाले 2.0 भी कहा जाता है। यह पिछले 2 वर्षों से वारिस पंजाब दे संगठन को संभाल रहे थे। अमृतपाल सिंह के अनुसार खालिस्तान सिखों की विचारधारा है जो कभी मरती नहीं। एक लम्बे समय से उनके अनुयायी उनकी रिहाई की मांग कर रहे थे, वर्तमान से वे कानून से फरार हैं। 

खालिस्तान आंदोलन

  • वर्तमान पंजाब में सिखों की एक अलग सम्प्रभु राज्य बनाने के लिए एक लड़ाई है। 
  • सिख धर्म के आधार पर बने नए राज्य को खालिस्तान का नाम दिया गया।
  • खालिस्तान अपने राज्य के लिए पंजाब समेत उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, हरियाणा, हिमांचल प्रदेश, दिल्ली व चंडीगढ़ के भी कुछ क्षेत्रों का दावा करता है। 
  • खालिस्तान की मांग की शुरुआत ब्रिटिश राज्य के पतन के बाद शुरु हुई थी।
  • ऑपरेशन ब्लू स्टार व ऑपरेशन ब्लैक थंडर के बाद भारत में आंदोलन को कुचल दिया गया।

राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम

राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, भारतीय संसद दवारा 1980 में पारित किया गया था। यह एक प्रशासनिक अधिकार है जो किसी जिला मजिस्ट्रेट या मण्डल आयुक्त द्वारा पारित किया जाता है। यह अधिनियम- 

  • राज्य को बिना किसी औपचारिक आरोप और बिना मुकदमे के किसी व्यक्ति को हिरासत में लेने का अधिकार देता है।
  • अधिनियम के तहत, एक व्यक्ति को “राज्य की सुरक्षा” या “सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव” के लिए किसी भी तरह के प्रतिकूल कार्य को करने से रोकने के लिए हिरासत में लिया जाता है। 
  • यदि कोई व्यक्ति पुलिस हिरासत में है तो भी उसके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम लगाया जा सकता है।
  • यदि किसी व्यक्ति को ट्रायल कोर्ट में रिहा कर दिया गया है तो भी उसे इस अधिनियम के तहत हिरासत में लिया जा सकता है।
  • यदि व्यक्ति को अदालत में बरी कर दिया गया है तो भी उसे इस अधिनियम के तहत हिरासत में लिया जा सकता है।
  • कानून, किसी व्यक्ति के 24 घण्टे में मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने के संवैधानिक अधिकार को छीन लेता है।
  • हिरासत में लिए गए व्यक्ति को आपराधिक अदालत के समक्ष जमानती अर्जी दायर करने का भी अधिकार नहीं है। 

नजरबंदी का आधार-

  • NSA किसी भी व्यक्ति को भारत की रक्षा, विदेशी शक्ति के सात भारत के संबंधों या भारत की सुरक्षा के लिे किसी भी तरह के पूर्वाग्रह से ग्रसित होने से रोकने के लिए लागू किया जा सकता है।
  • हिरासत में लिए गए व्यक्ति को विशेष परिस्थिति में 10 – 12 महीने की अवधि के लिए बिना किसी आरोप के हिरासत में लिया जा सकता है।
  • किसी व्यक्ति को बिना किसी आरोप के 12 महीने की अवधि के लिए हिरासत में लिया जा सकता है। अर्थात 12 दिन के पश्चात कानून प्रभावी नहीं होगा।

अधिनियम के तहत सुरक्षा

    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22 में निहित कुछ मामलों में निवारक हिरासत या गिरफ्तारी के संबंध में सुरक्षा के अधिकार दोनों की अनुमति देता है। 
    • अनुच्छेद 22(3) के तहत यदि किसी व्यक्ति को निवारक निरोध अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया जाए तो इसे 22(1) व 22(2) के तहत संरक्षण प्राप्त नहीं होगा।
    • एनएसए के तहत एक महत्वपूर्ण प्रक्रियात्मक सुरक्षा अनुच्छेद 22(5) के तहत प्रदान की जाती है, जहां सभी हिरासत में लिए गए व्यक्तियों को एक स्वतंत्र सलाहकार बोर्ड के समक्ष एक प्रभावी प्रतिनिधित्व करने का अधिकार है। जिसमें तीन सदस्य होते हैं; और बोर्ड की अध्यक्षता एक ऐसे सदस्य द्वारा की जाती है जो उच्च न्यायालय का न्यायाधीश है या रह चुका है। 
    • निरोध आदेश पारित करने वाले डीएम को अधिनियम के तहत संरक्षित किया जाता है: आदेशों को पूरा करने वाले अधिकारी के खिलाफ कोई मुकदमा या कोई कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है।
    • एनएसए के तहत लोगों को हिरासत में लेने की राज्य की शक्ति के खिलाफ संविधान के तहत बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट उपलब्ध उपाय है। 
  • राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के लिए सर्वोच्च न्यायालय का रुख- अधिनियम के दुरुपयोग को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के अनुसार निरोध नियमों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का सावधानीपूर्वक अनुपालन किया जाना चाहिए।

अधिनियम की आलोचना 

  • अधिनियम, संविधान के अनुच्छेद 22(3) व सीआरपीसी के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम की आलोचना करता है। 
  • सीआरपीसी के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घण्टों के अंदर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाना चाहिए और NSA इससे नितांत विरोधी प्रावधान रखता है। जिससे यह हमेशा विवाद की स्थिति बनी रहती है।

राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम को राज्य के सुरक्षा संबंधी हितों की रक्षा करने के कारण कठोर कानून नहीं माना जाता है।

स्रोत

Yojna IAS daily current affairs hindi med 21st March 2023

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