13 Jan लुप्तप्राय स्मारक
लुप्तप्राय स्मारक
संदर्भ- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित कई स्मारक विलुप्त हो चुके हैं, राष्ट्रीय महत्व के 24 स्मारकों की खोज जारी है। केंद्रीय़ मंत्रालय के अनुसार देश में कुल 3693 केंद्र संरक्षित व 4508 राज्य संरक्षित स्मारक हैं। कैग ने ‘संस्मारकों और पुरावशेषों के संरक्षण और संरक्षण के प्रदर्शन लेखापरीक्षा’ 2013 रिपोर्ट के अनुसार देश के 92 स्मारक गायब थे।
विलुप्त स्मारक- एएसआई की स्थापना के बाद प्राचीन स्मारकों के विषय में जानकारी जुटाई गई, लेकिन स्वतंत्रता के बाद आर्थिक रूप से कमजोर देश को सशक्त बनाने की नीतियों पर कार्य किया गया। अतः शहरीकरण औद्योगिकीकरण के चलते कई स्मारक ध्वस्त हो गए। वर्तमान में 24 स्मारक विलुप्त हैं, जिनकी स्थिति के विषय में अभी जानकारी नहीं मिल पाई है जैसे-
- बाराखंबा कब्रिस्तान (दिल्ली)
- शाहबाद(कुरुक्षेत्र) की कोसमीनार
- सम्राट शेर शाह, तिनसुकिया (असम) की बंदूकें
- तांबे के मंदिर के अवशेष, पाया, लोहित (अरुणाचल प्रदेश);
- कोस मीनार, मुजेसर, फरीदाबाद (हरियाणा);
- कुटुम्बरी मंदिर, द्वाराहाट, अल्मोड़ा (उत्तराखंड);
- रॉक शिलालेख, सतना (मध्य प्रदेश);
- पुराना यूरोपीय मकबरा, पुणे (महाराष्ट्र);
- बारां (राजस्थान) का 12वीं सदी का मंदिर,
- तेलिया नाला बौद्ध खंडहर, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)।
स्मारक- एक ऐसी संरचना जो किसी विशेष व्यक्ति या घटना की विशेष स्मृति में बनाई गई हैं, या किसी सामाजिक समुदाय के लिए उस संरचना का इतिहास महत्वपूर्ण है। संरक्षण के लिए इन्हें केंद्र या राज्य द्वारा संरक्षण दिया जाता है। प्राचीन स्मारक व पुरातत्व स्थल और अवशेष, अधिनियम 1958 के अनुसार प्राचीन स्मारक-
प्राचीन स्मारक – कोई ऐसी संरचना, रचना या स्मारक या कोई स्तूप या दफनगाह, या कोई गुफा, शैल-रूपाकृति उत्कीर्ण लेख या एकाश्मक जो ऐतिहासिक, पुरातत्वीय या कलात्मक रुचि का है और जो कम से कम एक वर्षों से विद्यमान है, अभिप्रेत है, और इसके अंतर्गत है-
- किसी प्राचीन स्मारक के अवशेष,
- किसी प्राचीन स्मारक का स्थल,
- किसी प्राचीन स्मारक के स्थल से लगी हुई भूमि का ऐसा प्रभाग जो ऐसे स्मारक को बाढ़ से घेरने या आच्छादित करने या अन्यथा परिरक्षित करने के लिए अपेक्षित हो, तथा
- किसी प्राचीन स्मारक तक पहुंचने और उसके सुविधापूर्ण निरीक्षण के साधन
केंद्रीय रूप से संरक्षित स्मारक-
- प्राचीन स्मारक व पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम 1958, के अधीन एएसआई राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों को संरक्षित करता है।
- ऐसा कोई भी प्राचीन स्मारक या पुरातात्विक स्थल जो धारा 3 के अंतर्गत नहीं आता है और राष्ट्रीय महत्व का है।
- यह अधिनियम, 100 वर्षों से अधिक पुराने स्मारकों और अवशेषों जैसे- मंदिर, कब्रिस्तान, शिलालेख, मकबरे, किले, महल, सीढ़ीदार कुएँ, चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफाएँ आदि की सुरक्षा करता है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) व उसके कार्य
एएसआई की स्थापना 1861 में अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा की गई थी। राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत के पुरातात्विक अनुसंधान व संरक्षण के लिए ASI एक प्रमुख संगठन है।वर्तमान में एएसआई द्वारा संरक्षित लगभग 3600 स्मारक हैं। इसका प्रमुख कार्य राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों, पुरातात्विक अवशेषों व स्थलों का रखरखाव करना है। इसके अन्य कार्य-
- पुरातात्विक अन्वेषण और खुदाई का आयोजन;
- संरक्षित स्मारकों और पुरातात्विक स्थलों का रखरखाव, संरक्षण और
- राष्ट्रीय महत्व के अवशेष; स्मारकों और पुरातन अवशेषों का रासायनिक संरक्षण;
- स्मारकों का वास्तुकला सर्वेक्षण;
- अनुवांशिक और न्यूमिज़माटिक अध्ययन
- साइट संग्रहालयों की स्थापना और पुन: संगठन;
- पुरातत्व में प्रशिक्षण;
- भारत के बाहर पुरातात्विक अभियान;
- प्राचीन स्मारकों और साइटों के आसपास और आसपास बागवानी संचालन;
- कार्यान्वयन और विनियमन – प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थलों और अवशेष अधिनियम, 1958; पुरातनता और कला खजाने अधिनियम, 1972, आदि।
सुरक्षा संबंधी एएसआई के कार्य व शक्तियाँ
- अधिनियम के अनुसार, एएसआई अधिकारियों को स्मारकों की स्थिति का आंकलन करने के लिए नियमित रूप से निरीक्षण करना चाहिए,
- स्मारक में अतिक्रमण की स्थिति में पुलिस में शिकायत कर सकती है तथा अतिक्रमण अधिकारियों के लिए ‘कारण बताओ’ नोटिस जारी कर सकती है।
- स्थानीय प्रशासन को अतिक्रमण हटाने की आवश्यकता बता सकती है।
स्रोत
https://asi.nic.in/HI/about-us/
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