मृत्युदण्ड 

मृत्युदण्ड 

मृत्युदण्ड 

संदर्भ- हाल ही में बेअंत सिंह हत्या केस में बब्बर खालसा के आतंकवादी बलवंत सिंह राजोआना को प्राप्त मृत्युदण्ड की सजा को कम करने अथवा आजीवन कारावास देने के लिए याचिका दायर की गई किंतु न्यायालय ने इस याचिका को अस्वीकार कर दिया गया।

बेअंत सिंह हत्या केस –

बेअंत सिंह 1995 को 12 अन्य लोगों के साथ चंडीगढ़ में आत्मघाती हमले में मारे गए। राजोआना को 2007 में सीबीआई की विशेष अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। SGPC ने मार्च 2012 तक उसकी ओर से दया याचिका दायर की। 2019 में भी MHA ने मृत्युदण्ड को आजीवन कारावास में बदलने का प्रस्ताव दिया गया था किंतु न्यायालय में यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया गया। 

बब्बर खालसा- 

बब्बर खालसा इंटरनेशनल भारत में स्थित एक खालिस्तान संगठन है। बब्बर खालसा की स्थापना 1978 में की गई थी। 1980 में इस संगठन का नेता सुखदेव सिंह बब्बर था। जिसका उद्देश्य एक स्वतंत्र सिख राज्य (खालिस्तान) की स्थापना करना था, जिस कारण भारत में इसे आतंकवादी संगठन माना जाता है, जबकि इसके अनुयायी इसे प्रतिरोधी दल कहते हैं। इस संगठन ने पंजाब विद्रोह 1980 में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस संगठन को भारत समेत कई यूरोपीय देशों ने एक आतंकवादी संगठन के रूप में नामित किया है। 

भारत में मृत्युदण्ड की स्थिति

किसी व्यक्ति को उसके द्वारा किए गए अपराध के लिए न्यायिक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। न्यायिक प्रक्रिया में उसके द्वारा किए गए अपराध की गंभीरता की पुष्टि कर उसे दण्ड दिया जाता है। अपराध की गंभीरता के आधार पर अपराधी को मृत्युदण्ड दिया जाता है। भारत में निम्नलिखित प्रावधानों के तहत ही मृत्युदण्ड दिया जा सकता है। 

भारतीय दण्ड संहिता 1860 के तहत धारा 299, धारा 300, धारा 302, धारा 304 के अंतर्गत आने वाले अपराध को जघन्य अपराध की श्रेणी में रखा गया है और निम्न अपराधों पर ही मृत्युदण्ड दिया जा सकता है-

  • हत्या, 
  • धन के लिए हत्या (दहेज हत्या)
  • अपहरण, दासत्व, बलातश्रम आदि
  • गर्भपात, बलात्कार आदि।

आपराधिक कानून संशोधन विधेयक 2013  में सामूहिक बलात्कार को भी मौत की सजा दी गई है।

आपराधिक कानून संशोधन विधेयक 2018 के अनुसार 12 साल से कम उम्र की लड़कियों के बलात्कार के लिए मृत्युदण्ड की सजा दी जा सकती है। 

विस्फोटक पदार्थ संशोधन अधिनियम 2001 की धारा 3(B) के तहत किसी आतंकवादी घटना में किसी विस्फोटक पदार्थों के प्रयोग से हुई मौतों को भी जघन्य अपराध की श्रेणी में रखा जाता है। जिसमें मृत्युदण्ड दिया जा सकता है।  

मृत्युदण्ड की सजा का न्यूनीकरण-

अनुच्छेद 72– भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 के अनुसार राष्ट्रपति को दोषी ठहराए गए किसी व्यक्ति को दिए गए दण्ड को कम या समाप्त करने की शक्ति है, यह शक्ति कुछ सीमित मामलों में दी जाती है जैसे-

  • सेना न्यायालय द्वारा दिया गया दण्डादेश 
  • कार्यपालिका की शक्ति के किसी विधि के विरुद्ध अपराध
  • मृत्युदण्ड के केस में।

राष्ट्रपति को अपनी इस शक्ति या अधिकार का प्रयोग, केंद्रीय मंत्रीमण्डल की सलाह पर करना होता है। 

  • राज्य स्तरीय कुछ मामलों में राज्यों के राज्यपाल को सजा को कम करने की शक्ति दी गई है। 

शत्रुघ्न चौहान बनाम भारत संघ 2014 केस में न्यायालय ने मृत्युदण्ड को आजीवन कारावास में बदलने के लिए कुछ दिशानिर्देश जारी किए गए थे। इसका प्रयोग राजीव गांधी हत्याकांड केस में लागू किया गया था, जिसमें राजीव गांधी के हत्यारों को दिए गए मृत्युदण्ड से आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। इस प्रकार कई मामलों में मृत्युदण्ड को खारिज कर अपराधियों को आजीवन कारावास दिया गया था। जैसे- 

तेलंगाना हाइकोर्ट केस- तेलंगाना हाइकोर्ट ने 2019 में एक अनुसूचित जाति की महिला के साथ सामूहिक बलात्कार के केस में तीन आरोपियों को दिए गए मृत्युदण्ड को कम कर अंतिम सांस तक आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। 

वार्षिक मृत्युदण्ड रिपोर्ट 2022 के बढ़ते आंकड़ों के कारण उच्च न्यायालय ने मृत्युदण्ड को देश में कम करने के निर्देश दिए हैं। आंकड़ों के अनुसार 2022 में भारत में कुल 165 अपराधियों को मृत्युदण्ड की सजा दी गई थी, जबकि 2021 में यह आंकड़ा 145 था।

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