15 Jun 2024 जल ( प्रदूषण निवारण और नियंत्रण ) संशोधन विधेयक, 2024 और भारत में भूजल प्रदूषण
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 2 के अंतर्गत ‘ जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) संशोधन विधेयक, 2024 के प्रमुख उपबंध, भूजल को दूषित करने के लिये ज़िम्मेदार प्राथमिक कारक, भूजल प्रदूषण के स्रोत सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप ’ खंड से और सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 3 के अंतर्गत ‘ पर्यावरण संरक्षण और पर्यावरण प्रदूषण, भारत में सिंचाई प्रणाली , वैधानिक निकाय ’ खंड से तथा प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ जल (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1974, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981, राष्ट्रीय हरित अधिकरण, केंद्रीय भूजल प्राधिकरण, ब्लैक फुट रोग, ब्लू बेबी सिंड्रोम, इटाई इटाई रोग, अटल भूजल योजना, जल शक्ति अभियान, जलभृत मानचित्रण एवं प्रबंधन कार्यक्रम, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना ‘ से संबंधित है। इसमें योजना आईएएस टीम के सुझाव भी शामिल हैं। यह लेख ‘ दैनिक कर्रेंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) संशोधन विधेयक, 2024 और भारत में भूजल प्रदूषण ’ से संबंधित है।)
खबरों में क्यों ?
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने हाल ही में पूरे भारत में भूजल में ज़हरीले आर्सेनिक एवं फ्लोराइड के व्यापक मुद्दे पर केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (CGWA) की प्रतिक्रिया पर असंतोष व्यक्त किया है, क्योंकि भारत के 25 राज्यों के 230 जिले आर्सेनिक से, और 27 राज्यों के 469 जिले फ्लोराइड से प्रभावित हैं।
- इसी बीच भारतीय संसद के दोनों सदनों द्वारा हाल ही में जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) संशोधन विधेयक, 2024 को मंज़ूरी भी दे दी गई है।
जल ( प्रदूषण निवारण और नियंत्रण ) संशोधन विधेयक, 2024 के प्रमुख उपबंध क्या हैं ?
जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) संशोधन विधेयक, 2024 के प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं –
- छोटे अपराधों का गैर-अपराधीकरण करना : यह प्रावधान तकनीकी या प्रक्रियात्मक खामियों के लिए कारावास की संभावना को समाप्त करता है, जिससे जल प्रदूषण से संबंधित मामूली अपराधों को गैर-अपराधीकृत किया जा सके।
- विशेष औद्योगिक संयंत्रों के लिए छूट प्रदान करना : जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) संशोधन विधेयक, 2024 के प्रमुख प्रावधान के तहत केंद्र सरकार को कुछ विशेष प्रकार के औद्योगिक संयंत्रों के लिए, बिक्री केंद्रों और निर्वहन से संबंधित, धारा 25 में सूचीबद्ध कुछ प्रतिबंधों से छूट प्रदान करने का अनुमति देता है।
- नियामक प्रक्रियाओं में सुधार : भारतीय संसद द्वारा संशोधित विधेयक में प्रस्तावित सुधारों में, प्रक्रियाओं को सुस्थिर करना, मॉनीटरिंग प्रक्रिया में दोहराव को कम करना और नियामक संस्थाओं पर कम निर्भरता करने को सुनिश्चित करना शामिल है।
- नियामक निरीक्षण में सुधार : भारत के संसद द्वारा किए गए इस प्रमुख संशोधन में यह सुनिश्चित करना है कि केंद्र सरकार, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के अध्यक्षों की निष्पक्षता, प्रक्रिया, निरीक्षण और मानकीकरण में सुधार के उपाय, जिसमें केंद्र सरकार उद्योगों से संबंधित नियुक्तियों और सहमति प्रक्रियाओं के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित करेगी। इन संशोधनों का उद्देश्य जल संसाधनों के सतत प्रबंधन को सुनिश्चित करते हुए विनियामक दृष्टिकोण को आधुनिक बनाना है।
- नियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना : यह केंद्र सरकार को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के अध्यक्षों के नामांकन के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित करने और उद्योग से संबंधित सहमति देने, इनकार करने या रद्द करने के निर्देश जारी करने का अधिकार देता है।
जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) संशोधन विधेयक, 2024 के विपक्ष में दिए जाने वाला तर्क :
- जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 का उद्देश्य पानी की संपूर्णता को संरक्षित करना और प्रदूषण को नियंत्रित करना था।
- इसके तहत, केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की स्थापना की गई है, जो पर्यावरण मंत्रालय (MoEFCC) के साथ मिलकर काम करते हैं। 1978 और 1988 में संशोधनों के माध्यम से, इन बोर्डों को अधिक शक्तियाँ प्रदान की गई थी।
- इस संशोधित विधेयक के प्रमुख दायित्वों में, अब प्रत्येक उद्योग और स्थानीय निकाय को प्रदूषकों के प्रवाह से पहले राज्य बोर्ड से सहमति प्राप्त करनी होती है।
- राज्य बोर्ड विशिष्ट शर्तों और वैधता तिथियों के साथ सहमति दे सकता है या लिखित में कारण बताते हुए सहमति देने से इनकार कर सकता है। इसी तरह के प्रावधान अधिनियम लागू होने से पहले व्यापार/प्रवाह अपशिष्ट का निर्वहन करने वाले उद्योगों पर भी लागू होते हैं।
- इस संशोधन के समीक्षा करने पर कुछ आलोचकों का मानना है कि इस संशोधन से भारत के संघीय सिद्धांतों के प्रति समस्या हो सकती है, प्रदूषण प्रबंधन में पारदर्शिता में कमी हो सकती है, और उद्योगों/नियामकों की जिम्मेदारी में समस्या हो सकती है।
केंद्रीय भूजल प्राधिकरण :
केंद्रीय भूजल प्राधिकरण का निर्माण भारत में भूजल संसाधनों के संरक्षण, नियंत्रण और प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत किया गया है।
मुख्य कार्य :
- भूजल के समुचित विनियमन, प्रबंधन, और विकास को प्रोत्साहित करना।
- इसी प्रक्रिया में सहायक नियमों और मार्गदर्शन को प्रकाशित करना।
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के माध्यम से अधिकारी नियुक्ति में सहायता प्रदान करना।
भारत में भूजल प्रदूषण के मुख्य स्रोत :
भारत में भूजल प्रदूषण के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं –
- प्राकृतिक प्रदूषक : भारत में आर्सेनिक, फ्लोराइड, और लौह की उपस्थिति के कारण पश्चिम बंगाल और असम भूजल प्रदूषण से सबसे अधिक प्रभावित हैं।
- कृषि : भारत में कृषि क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाला उर्वरक, कीटनाशक और हर्बिसाइड का अत्यधिक प्रयोग, जो हानिकारक रसायनों को जल में मिला देता है, भारत में भूजल प्रदूषण का मुख्य स्त्रोत्र है।
- औद्योगिक कचरा : भारत में भूजल प्रदूषण के मुख्य स्रोत के रूप में अनुपचारित औद्योगिक कचरे से होने वाला प्रदूषण, जो भूमि में मिलकर भारी धातु और विषैले पदार्थों को मिला देता है।
- नगरीकरण : सीवेज सिस्टम की लीकेज और अनुपयुक्त कूड़ा प्रबंधन से होने वाला प्रदूषण।
- ताजा पानी का समुंद्री पानी से मिश्रीकरण : भारत में भूजल प्रदूषण के मुख्य स्रोत के रूप में ख़ासकर समुंद्री क्षेत्रों में, ज़मीन से पानी के ज़्यादा पंपिंग से होने वाला मिश्रीकरण, जो पीने के पानी को ख़राब करता है।
- लवणता : भारत में भूजल प्रदूषण के मुख्य स्रोत के रूप में खारा जल: तटीय क्षेत्रों में, भूजल के अत्यधिक पंपिंग से समुद्र का खारा जल मीठे जल के जलभृतों में घुस सकता है, जिससे जल पीने या सिंचाई के लिये अनुपयोगी हो जाता है।
- राजस्थान में (लवणता) प्रदूषण से प्रभावित ग्रामीण बस्तियों की संख्या सर्वाधिक है।
भूजल को दूषित करने के लिए उत्तरदायी अभिकर्त्ता :
भूजल को दूषित करने के लिए उत्तरदायी प्राथमिक अभिकर्त्ता निम्नलिखित हैं –
- आर्सेनिक : यह प्राकृतिक रूप से पाया जाता है, लेकिन इसके साथ ही यह कृषि, खनन और विनिर्माण में उपयोग होने वाले मानव निर्मित रूपों में भी मौजूद होता है। औद्योगिक और खनन निर्वहन के साथ-साथ थर्मल पावर प्लांटों में फ्लाई ऐश तालाबों से रिसाव के कारण आर्सेनिक भूजल में मिल सकता है। आर्सेनिक के निरंतर संपर्क से ब्लैक फूट रोग होने की संभावना होती है।
- फ्लोराइड : भारत में, उच्च फ्लोराइड सामग्री वाले जल की खपत के कारण फ्लोरोसिस एक प्रचलित समस्या है। अत्यधिक फ्लोराइड के सेवन से न्यूरोमस्कुलर विकार, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएँ, दंत विकृति और कंकाल फ्लोरोसिस हो सकता है, जिसकी विशेषता अत्यधिक दर्द और जोड़ों का कठोर होना है। घुटनों के पैरों से बाहर की ओर झुकने के कारण नॉक-नी सिंड्रोम भी हो सकता है।
- नाइट्रेट : पीने के जल में अत्यधिक नाइट्रेट का स्तर हीमोग्लोबिन के साथ प्रतिक्रिया करता है, जिससे गैर-कार्यात्मक मीथेमोग्लोबिन का निर्माण होता है और ऑक्सीजन परिवहन में बाधा उत्पन्न होती है, जिससे मीथेमोग्लोबिनेमिया या ब्लू बेबी सिंड्रोम हो सकता है। उच्च नाइट्रेट स्तर कार्सिनोजेन्स के निर्माण में योगदान दे सकता है और सुपोषणीकरण को तेज़ कर सकता है।
- यूरेनियम : भारत में, लंबे भौतिक अर्द्ध जीवन के साथ कमजोर रेडियोधर्मी यूरेनियम, स्थानीय क्षेत्रों में WHO के दिशा-निर्देशों से ऊपर की सांद्रता में पाया जाता है। राजस्थान और उत्तर-पश्चिमी राज्यों में यह मुख्य रूप से जलोढ़ जलाभृतों में मौजूद है, जबकि तेलंगाना जैसे दक्षिणी राज्यों में यह ग्रेनाइट जैसी क्रिस्टलीय चट्टानों से उत्पन्न होता है। पीने के जल में यूरेनियम का उच्च स्तर किडनी विषाक्तता का कारण बन सकता है।
- रेडॉन : हाल ही में बेंगलुरु के कुछ क्षेत्रों में पीने के लिए उपयोग किए जाने वाले भूजल में रेडियोधर्मी रेडॉन का स्तर काफी अधिक पाया गया है। रेडॉन की उत्पत्ति रेडियोधर्मी ग्रेनाइट और यूरेनियम से होती है, जो क्षय होकर रेडियम तथा रेडॉन में परिवर्तित हो जाता है। वायु और जल में रेडॉन की उपस्थिति फेफड़ों के ऊतकों को नुकसान पहुँचा सकती है, जिससे फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
- अन्य ट्रेस धातुएँ : जल में सीसा, पारा, कैडमियम, ताँबा, क्रोमियम और निकल जैसी ट्रेस धातुओं की उपस्थिति भी हो सकती है, जिनमें कैंसरकारी गुण होते हैं। कैडमियम से दूषित जल से इटाई इटाई रोग (आउच-आउच रोग) की संभावना होती है। पारा से दूषित जल मनुष्यों में मिनामाटा (न्यूरोलॉजिकल सिंड्रोम) का कारण बनता है।
भूजल प्रबंधन से संबंधित वर्तमान सरकारी पहल :
भूजल प्रबंधन से संबंधित वर्तमान सरकारी पहलें निम्नलिखित हैं –
- अटल भूजल योजना : भूजल संरक्षण और इसके टिकाऊ प्रबंधन के लिए केंद्रित एक योजना है।
- जल शक्ति अभियान : यह भारत में जल संरक्षण और जल सुरक्षा को बढ़ावा देने वाली एक पहल है।
- जलभृत मानचित्रण एवं प्रबंधन कार्यक्रम : यह जलभृतों का मानचित्रण और उनके प्रबंधन की दिशा में उठाया गया कदम है।
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 : यह भारत में पर्यावरण संरक्षण के लिए लागू किया गया व्यापक अधिनियम है।
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना : यह भारत सरकार द्वारा शुरू की गई सिंचाई की सुविधा और जल संसाधनों का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करने की एक महत्वपूर्ण योजना है।
- जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) संशोधन विधेयक, 2024 : यह भारत सरकार द्वारा जल प्रदूषण को रोकने और उसे नियंत्रित करने के लिए प्रस्तावित एक विधेयक है।
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण : यह भारत में पर्यावरणीय विवादों का निपटारा करने वाला एक न्यायाधिकरण है ।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड : यह भारत में जल प्रदूषण की निगरानी और नियंत्रण के लिए केंद्रीय निकाय के रूप में कार्य करता है।
इस प्रकार की सभी पहलें भारत में भूजल प्रबंधन और जल संरक्षण को सुधारने के लिए सरकार द्वारा उठाये गए महत्वपूर्ण कदम हैं।
समाधान / आगे की राह :
- भूजल विनियमन को सुदृढ़ करना : औद्योगिक अपशिष्ट निपटान और कृषि पद्धतियों के लिए कड़े नियम लागू करना, जिससे भूजल की गुणवत्ता सुनिश्चित हो सके।
- परमिट प्रणाली लागू करना : जलभृत पुनर्भरण दरों के आधार पर कोटा के साथ भूजल निष्कर्षण के लिए एक परमिट प्रणाली लागू करना, ताकि भूजल का संतुलित उपयोग हो सके।
- सतत् कृषि को बढ़ावा देना : किसानों को परिशुद्ध कृषि तकनीकों, उर्वरकों के सावधानीपूर्वक उपयोग और ड्रिप सिंचाई जैसी कुशल सिंचाई प्रथाओं को अपनाने के लिए सहायिकी तथा प्रशिक्षण प्रदान करना और सतत कृषि को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
- बुनियादी ढाँचे में निवेश करना : भारत में भूजल प्रदूषण से निपटने के लिए अनुपचारित अपवाहित मल द्वारा भूजल को प्रदूषित करने से रोकने के लिए अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों के निर्माण और रखरखाव में निवेश करना।
- जल प्रबंधन मॉडल को बढ़ावा देकर विकेंद्रीकृत प्रबंधन स्वरूप को अपनाना : सहभागी जल प्रबंधन मॉडल को बढ़ावा देकर स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना। इसमें जल उपयोगकर्त्ता संघ (WUA) बनाना शामिल है जो स्थानीय क्षेत्रों में भूजल निष्कर्षण की योजना, निगरानी और विनियमन में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं।
- वर्षा जल संचयन और ब्लू क्रेडिट को प्रोत्साहित करना : वर्षा जल संचयन, ग्रेवाटर रीसाइक्लिंग और घरेलू तथा औद्योगिक क्षेत्रों में जल संचय से संबंधित प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए ब्लू क्रेडिट जैसे वित्तीय प्रोत्साहन की पेशकश करना जरूरी है।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग करके डेटा का विश्लेषण करना : AI के माध्यम से जल की गुणवत्ता, उपयोग प्रतिरूप और जलभृत विशेषताओं से संबंधित व्यापक डेटा का विश्लेषण करना होगा। इससे संदूषण जोखिमों का पूर्वानुमान करने और लक्षित मध्यवर्तन कार्यान्वित करने में मदद मिल सकती है।
स्रोत – द हिन्दू एवं इंडियन एक्सप्रेस।
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारत में विभिन्न राज्यों में पीने के जल में प्रदूषक के रूप में निम्नलिखित में से क्या पाए जा सकते हैं? (UPSC – 2019)
- यूरेनियम
- आर्सेनिक
- सॉर्बिटोल
- फ्लोराइड
- फॉर्मेल्डिहाइड
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर का चुनाव कीजिए।
A. केवल 1, 2, 3 और 4
B. केवल 2, 3. 4 और 5
C. केवल 1, 3 .4 और 5
D. केवल 1, 2 और 4
उत्तर – D
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q. 1. “ वर्तमान समय में विश्व के सभी सभ्यताओं के मानवीय दुखों का मुख्य कारण भूमि एवं जल संसाधनों के अप्रभावी और कुप्रबंधन का परिणाम है। ” इस कथन के संदर्भ में भारत सरकार द्वारा जल संरक्षण और कुशल जल प्रबंधन हेतु आरंभ की गई जल शक्ति अभियान की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए और भारत में जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपायों का समाधान प्रस्तुत कीजिए। (UPSC – 2021 , शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
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