मातंगिनी हाजरा

मातंगिनी हाजरा

 

  • 19 अक्टूबर को स्वाधीनता सेनानी मातंगिनी हाजरा की देश 151 वीं जयंती मनाया गया है। भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ऐसी अनेक महिलाएं सामने आईं जिन्होंने अपने अपने कौशल से स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा थी ।
  • कुछ महिलाएं उदारवादी कानूनी मार्ग पर चल कर योगदान कर रही थीं तो कुछ क्रांतिकारी गतिविधियों के द्वारा । इन्हीं में एक महान वीरांगना थीं मातंगिनी हाजरा ।
  • 19 अक्टूबर, 1870 को मातंगिनी हाजरा ने तमलूक शहर से कुछ दूरी पर मौजूद होगला मिदनीपुर जिला में एक साधारण परिवार में जन्म लिया।
  • उन्हें बाल विवाह का दंश झेलना पड़ा और अत्यंत निर्धनता के चलते उनका विवाह मात्र 12 वर्ष की आयु में 62 वर्षीय विधुर त्रिलोचन हाजरा से कर दिया गया।
  • 1905 के स्वदेशी आंदोलन के दौरान मातंगिनी का राष्ट्रवादी चरित्र मुखर रूप में सामने आया । बहिष्कार और निष्क्रिय प्रतिरोध की रणनीति के उस दौर में उन्होंने गांधीवादी कार्य पद्धति में पूर्ण आस्था बनाए रखी ।
  • सूत कातने और खादी वस्त्रों को धारण करने की दिशा में उस समय की भारतीय महिलाओं के समक्ष उन्होंने एक मिसाल पेश किया।
  • मातंगिनी हाजरा नेगाँधीजी के ‘नमक सत्याग्रह’ में भी सक्रिय रूप से भाग लिया। 
  • 1932 में उनके गाँव में एक जुलूस निकला। उसमें कोई भी महिला नहीं थी। यह देखकर मातंगिनी जुलूस में सम्मिलित हो गईं।
  • इसके साथ ही वेगांधी जी के सविनय अवज्ञा आंदोलन की सक्रिय महिला सहभागी भी थीं । 
  • 17 जनवरी, 1933 को ‘करबन्दी आन्दोलन’ को दबाने के लिए बंगाल के तत्कालीन गर्वनर एण्डरसन तामलुक आये, तो उनके विरोध में प्रदर्शन हुआ।
  • वीरांगना मातंगिनी हाजरा सबसे आगे काला झण्डा लिये डटी थीं और उन्होंने काले झंडे पूर्ण निर्भीकता के साथ दिखाए भी ।वह ब्रिटिश शासन के विरोध में नारे लगाते हुई दरबार तक पहुँच गयीं।
  • इस पर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया औरछह माह का सश्रम कारावास देकर मुर्शिदाबाद जेल में बन्द कर दिया।
  • भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान भी इनकी भूमिका अप्रतिम रही ।29 सितंबर 1942 को अंग्रेजों के खिलाफ एक जुलूस निकाला गया था , जिसमें 6000 से अधिक आंदोलनकारी मौजूद थे। इसमें अधिकतर महिलाएं शामिल थीं। वहीं इस जुलूस का नेतृत्व 71 वर्षीय मातंगिनी हाजरा कर रही थीं।
  • प्रदर्शनकारियों ने तामलूक थाने पर धावा बोलने की योजना बनाई थी। उनका मकसद थाने को अपने कब्जे में करना था। जैसे ही जुलूस शहर में पहुंचा ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें लागू भारतीय दंड संहिता की धारा 144 के तहत रुकने का आदेश दिया। इससे जुलूस में भीड़ तितर बितर हो गई थी।
  • ऐसे में मातंगिनी ने हाथ में तिरंगा लिए आगे की ओर बढीं। वह वंदेमातरम के नारों को बुलंद कर रही थीं। तीन गोलियां खाने के बाद भी उन्होंने तिरंगे को अपने हाथों में थामे रखा था ।
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