करबोंग जनजाति

करबोंग जनजाति

 

  • उत्तर पूर्वी भारत में कारबोंग जनजाति के विलुप्त होने के अंतिम चरण में होने की रिपोर्ट हाल ही में आई है।
  • त्रिपुरा में हलम जनजाति समुदाय की एक उप-जनजाति कारबोंग (Karbong Tribe) अब विलुप्त होने की कगार पर है।
  • पूर्वोत्तर भारत के जनजातीय विशेषज्ञों की एक रिपोर्ट में हाल ही बताया गया है कि इस जनजाति के केवल 250 लोग हैं, जो पश्चिम त्रिपुरा और धलाई जिलों में रहते हैं।
  • उप-जनजाति के विशेषज्ञ हरिहर देबनाथ का कहना है कि, ‘माणिक्य शासकों ने कारबोंग लोगों को शिक्षित करने और उनके लिए शिक्षकों की व्यवस्था करने की कोशिश की थी, लेकिन यह सफल साबित नहीं हुआ।
  • 60 से 70 परिवारों के मुश्किल से 250 लोग कारबोंग जनजाति के बचे हैं। निर्धनता, असाक्षरता, अंतर्जातीय विवाह, उचित शिक्षा की कमी के कारण इनकी आबादी तेजी से घट रही है।
  • अन्य सभी जनजातियों से अलग भाषा होने के बावजूद कारबोंग को एक उप-जनजाति माना जाता है, इसलिए भारत की जनगणना उन्हें अलग से नहीं गिनती है।
  • 1940 की गजट अधिसूचना के अनुसार, त्रिपुरा में 19 आदिवासी समूह हैं, जिनमें कारबोंग समुदाय को हलम में शामिल किया गया है।
  • लुप्तप्राय ‘कारबोंग’ अपनी भाषा के माध्यम से अन्य स्वदेशी आदिवासी समूहों से खुद को अलग करते हैं, जो त्रिपुरा के अधिकांश आदिवासी समूहों की भाषा कोकबोरोक से अलग है और ये सभी हिंदू धर्म को मानते हैं।
  • करबोंग जनजाति समुदाय हाल ही में तब सुर्खियों में आया जब 18 अक्टूबर को त्रिपुरा के उच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकार को करबोंग जनजातीय समुदाय की वर्तमान स्थिति का आकलन करने और 9 नवंबर को या उससे पहले एक हलफनामा प्रस्तुत करने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम बनाने के लिए कहा है।
  • करबोंग लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा के भी लुप्त होने का खतरा है।यूनेस्को द्वारा भाषाओं के वर्गीकरण के अनुसार 10,000 से कम लोगों द्वारा बोली जाने वाली किसी भी भाषा को ‘संभावित संकटापन्न’ माना जाता है।
  • करबोंग जनजाति की पारंपरिक अर्थव्यवस्था की बात करें तो इसमें में जंगलों से पत्ते, कंद इकट्ठा करना शामिल है। इसके अलावा जंगली जानवरों और पक्षियों का शिकार करना, मछलियाँ पकड़ना भी इनके मुख्य कार्य हैं ।
  • ये सभी व्यवसाय करबोंग जनजाति के भोजन एकत्र करने की आदत को दर्शाते हैं। यह जनजाति झूम कृषि भी करती है।
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