क्या समझौता होने के बाद भी आरोपी को सजा मिलनी चाहिए?

क्या समझौता होने के बाद भी आरोपी को सजा मिलनी चाहिए?

 

  • साल 1994 में मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के एक छोटे से गांव में जमीन के एक टुकड़े को लेकर दो परिवारों के बीच विवाद होता है।
  • विवाद के दौरान कथित तौर पर एक परिवार द्वारा दूसरे परिवार के बारे में जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया गया। चूंकि दूसरा परिवार अनुसूचित जाति से था, इसलिए मामला एससी/एसटी एक्ट के तहत कोर्ट पहुंच गया।
  • कोर्ट ने आरोपी व्यक्ति को दोषी ठहराया और उसे संबंधित कानून के तहत सजा सुनाई। सजायाफ्ता व्यक्ति ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में गुहार लगाई, लेकिन 2 अगस्त, 2010 को उनकी अपील खारिज हो गई।
  • बाद में, आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और अदालत को सूचित किया कि मामला दोनों पक्षों के बीच सुलझा लिया गया है। बात सत्य भी थी, क्योंकि दूसरे पक्ष ने भी समझौता करने के लिए कोर्ट में एक आवेदन दायर किया था।
  • अब चूंकि मामला स्पेशल एक्ट के तहत चल रहा था, ऐसे में आरोपी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्यवाही रद्द नहीं की जा सकती थी। तो अब सवाल उठता है कि क्या समझौता होने के बाद भी व्यक्ति को सजा मिलनी चाहिए?
  • सुप्रीम कोर्ट ने ऊपर जिस मामले का ज़िक्र किया गया है इसी के बारे में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है।
  • अदालत ने जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई रद्द कर दी है। ये मामला खास इसलिए है क्योंकि कोर्ट ने कानून में प्रावधान ना होने पर भी ये फैसला दिया।
  • सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि मामला स्पेशल एक्ट के तहत दर्ज है, इस आधार पर अदालत केस रद्द करने से परहेज नहीं कर सकती।
  • हाई कोर्ट CrPC की धारा-482 के तहत और सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद-142 का इस्तेमाल कर केस रद्द कर सकता है। इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय ने दो स्थितियां बताईं।
  • पहला अगर कोर्ट को एससी-एसटी का केस प्राथमिक तौर पर प्राइवेट लगे और सिविल नेचर का लगे तो ऐसी कार्यवाही को खारिज करने के लिए कोर्ट अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकता है।
  • दूसरी स्थिति यह हो सकती है कि अगर दोनों पक्षों में मामले में समझौता हो गया हो और कोर्ट इस बात से संतुष्ट हो कि केस निरस्त हो सकता है तो भी केस खारिज किया जा सकता है। मौजूदा मामला दूसरी स्थिति से जुड़ा हुआ है।
  • उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए ये फैसला सुनाया।
  • कोर्ट ने कहा कि आरोपी और शिकायतकर्ता दोनों एक ही गांव के हैं और दोनों ने स्वेच्छा से समझौता किया है। ऐसे में, मामले को बढ़ाने से ज्यादा अच्छा है कि दोनों पक्षों के बीच सौहार्द और सद्भावना को बढ़ावा दिया जाए।
  • संविधान में सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद 142 के रूप में खास शक्ति प्रदान किया गया है। इसके तहत अगर किसी मामले में कानूनी प्रावधान उपलब्ध नहीं है तो ऐसे में व्यक्ति को पूर्ण न्याय देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय जरूरी निर्देश दे सकता है।
  • वहीं दंड प्रक्रिया संहिता 1973 यानि CrPC के धारा 482 में उच्च न्यायालय को अंतर्निहित शक्तियां प्रदान की गई हैं। इसका उद्देश्य न्यायालय की कार्यवाही को दुरुपयोग से बचाना है और न्याय के उद्देश्यों को बनाए रखना है।
  • कुल मिलाकर कोई भी संहिता, अधिनियम या क़ानून अपने आप में पूर्ण नहीं होते हैं। समय और परिस्थितियों के मुताबिक़ सब कुछ बदलता रहता है और विधायिका से भी कुछ चीजें छूट सकती हैं।
  • इसीलिए अनुच्छेद 142 जैसे प्रावधान किया गए हैं। तो यह थी बात अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को मिले विशेष शक्तियों की|
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