बायो डीकंपोजर

बायो डीकंपोजर

 

  • दिल्ली सरकार द्वारा फसल कटाई के बाद बची पराली को सड़ाने के लिए खेतों मेंजैव अपघटक घोल /  ‘बायो-डीकंपोजर घोल’ (Bio-Decomposer Solution) का छिड़काव शुरू कर दिया गया है।

पृष्ठभूमि:

  • दिल्ली सरकार, इस ‘जैव-अपघटक’ घोल कोपरली दहन  के समाधान के रूप में देखती है और अन्य राज्यों से इस पद्धति को अपनाने का आग्रह करती रही है।
  • सरकार ने पिछले साल सबसे पहले इसका छिड़काव किया था और सकारात्मक परिणाम मिलने का दावा किया था।

जैव-अपघटक का निर्माण:

  • इस तकनीक में प्रयुक्त जैव-अपघटक घोल को पूसा डीकंपोजर (Pusa Decomposer) भी कहा जा रहा है।
  • पूसा डीकंपोजर सात कवकों का एक मिश्रण होता है जो पराली (Paddy Straw) में पाए जाने वाले सेल्युलोज, लिग्निन और पेक्टिन को गलाने वाले एंजाइम का उत्पादन करता है।
  • कवक 30-32 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले वातावरण विकसित होते है, और धान की कटाई और गेहूं की बुवाई के समय यही तापमान होता है।

पूसा डीकंपोजर का खेतों में उपयोग किस प्रकार किया जाता है?

  • पूसा डीकंपोज़र कैप्सूल (Decomposer Capsules) का उपयोग करके एक ‘अपघटक घोल’ बनाया जाता है।
  • अपघटक घोल को 8-10 दिन किण्वित (fermenting) करने के पश्चात तैयार मिश्रण का फसल अपशिष्ट/पराली के शीघ्र जैव-अपघटन के लिए खेतों में छिड़काव किया जाता है।
  • किसान, चार पूसा डीकंपोज़र कैप्सूल, गुड़ और चने के आटे से 25 लीटर अपघटक घोल मिश्रण को तैयार कर सकते हैं, और यह 1 हेक्टेयर भूमि पर छिड़काव करने के लिए पर्याप्त होता है।
  • जैव अपघटन की प्रक्रिया को पूरा होने में लगभग 20 दिनों का समय लगता है। इसके बाद किसान पराली को जलाए बिना फिर से बुवाई कर सकते हैं।

पूसा डीकंपोजर के लाभ:

  • इस तकनीक के प्रयोग से मृदा की उर्वरता और उत्पादकता में सुधार होता है क्योंकि पराली फसलों के लिए उर्वरक का काम करती है और भविष्य में कम खाद लगाने की आवश्यकता होती है।
  • यह फसल-अपशिष्ट / पराली को जलाने से रोकने हेतु एक प्रभावी, सस्ती और व्यावहारिक तकनीक है।
  • यह पर्यावरण के अनुकूल और पर्यावरण की दृष्टि से उपयोगी तकनीक भी है।
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