15 Oct 2021 सिलिकोसिस
- भारत में खदानों, निर्माण कार्यों और कारखानों में कार्यरत अनगिनत श्रमिक धूल के संपर्क में आने के कारण धीरे-धीरे मृत्यु की ओर बढ़ रहे हैं। इसेसिलिकोसिस (Silicosis) के रूप में जाना जाता है।
- धूल के संपर्क में आने के कारण सिलिकोसिस को एकव्यावसायिक बीमारी या खतरे के रूप में वर्णित किया जा सकता है। यह लाइलाज है और स्थायी विकलांगता का कारण बन सकती है।
- हालाँकिउपलब्ध नियंत्रण उपायों और प्रौद्योगिकी द्वारा इसे पूरी तरह से रोका जा सकता है।
सिलिकोसिस के बारे में:
- सिलिकोसिस आमतौर पर उत्खनन, निर्माण और भवन निर्माण उद्योगों में काम करने वाले लोगों में होता है।
- सिलिका (SiO2/सिलिकॉन डाइऑक्साइड)एक क्रिस्टल/धातु जैसा खनिज है जो रेत, चट्टान और क्वार्ट्ज़ में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
- यह एक फेफड़ों की बीमारी है जो लंबे समय तक सिलिका के छोटे-छोटे कणों के साँस के माध्यम से शरीर के भीतर प्रवेश करने से होती है, जिसके सामान्य लक्षणों में साँस लेने में परेशानी होना, खाँसी, बुखार और त्वचा का रंग नीला पड़ना शामिल है।
- यह दुनिया में सबसे अधिक प्रचलित व्यावसायिक स्वास्थ्य बीमारियों में से एक है। औद्योगिक और गैर-औद्योगिक स्रोतों से उत्पन्न सिलिका धूल के जोखिम का प्रभाव गैर-व्यावसायिक क्षेत्रों की आबादी पर भी देखा जाता है।
- बड़ी मात्रा में मुक्त सिलिका के संपर्क पर ध्यान नहीं दिया जा सकता है क्योंकि सिलिका गंधहीन, गैर-उत्तेजक है और इसका तत्काल स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन लंबे समय तक इसके संपर्क में आने पर एक्सपोज़र न्यूमोकोनियोसिस, फेफड़ों का कैंसर, फुफ्फुसीय तपेदिक और अन्य फेफड़ों से संबंधित रोग उत्पन्न होते हैं।
- न्यूमोकोनियोसिस (Pneumoconiosis) फेफड़ों से संबंधित रोगों के समूह में से एक है जो कुछ प्रकार के धूल कणों में साँस लेने के कारण होता है और ये फेफड़ों को नुकसान पहुँचाते हैं।
- इसके निदान के संदर्भ में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इसका पता लगाना कठिन हो जाता है कि रोगी तपेदिक (Tuberculosis) या सिलिकोसिस से ग्रसित है या नहीं।
- ग्रंथियाँ जो एक समूह निर्मित करने के लिये एकत्र होती हैं, उन्हें छाती के एक्स-रे द्वारा पहचानने में 20 वर्ष तक का समय लग सकता है और पीड़ित को कई वर्षों तक सिलिका के संपर्क में रहने के बाद ही लक्षण दिखाई देते हैं।
- सामान्यत:सिलिकोटिक नोड्यूल दृढ़, असंतत, गोल घाव होते हैं जिनमें काले वर्णक की एक चर मात्रा होती है।
- नोड्यूल श्वसन ब्रोन्किओल्स (Bronchioles) और छोटी फुफ्फुसीय (Pulmonary) धमनियों के आसपास होते हैं।
- भारत में निर्माण और खनन श्रमिकों के बीच गुजरात, राजस्थान, पुद्दुचेरी, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में सिलिकोसिस का प्रभाव अधिक देखा गया है।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
कानूनी सुरक्षा:
- सिलिकोसिस को खान अधिनियम (Mines Act), 1952 और फैक्ट्री अधिनियम, 1948 के तहत अधिसूचित बीमारी के रूप में शामिल किया गया है।
- इसके अलावा फैक्ट्री अधिनियम, 1948 के तहत हवादार कामकाजी वातावरण, धूल से सुरक्षा, भीड़भाड़ में कमी और बुनियादी व्यावसायिक स्वास्थ्य देखभाल के प्रावधान को अनिवार्य किया गया है।
सिलिकोसिस पोर्टल:
- सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग द्वारा एक ‘सिलिकोसिस पोर्टल’ की शुरुआत की गई है।
स्व-पंजीकरण:
- ज़िला स्तरीय न्यूमोकोनियोसिस बोर्डों के माध्यम से यह कार्यकर्त्ता स्व-पंजीकरण और निदान की एक प्रणाली है जिसके आधार पर ज़िला खनिज फाउंडेशन ट्रस्ट (DMFT) निधि से मुआवज़ा दिया जाता है, इसमें खदान मालिक योगदान करते हैं।
व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यस्थल स्थिति संहिता 2020 (OSHWC):
- यह संहिता सभी नियोक्ताओं के लिये सरकार द्वारा निर्धारित उपयुक्त वार्षिक स्वास्थ्य जाँच मुफ्त प्रदान करना अनिवार्य बनाती है।
संबद्ध चुनौतियाँ:
अधिसूचना का अभाव:
- खनन क्षेत्र द्वारा सिलिकोसिस के संबंध में अधिसूचना के अभाव के कारण अधिकांशतः सिलिकोसिस का निदान तपेदिक के रूप में किया जाता है।
अमानवीय चक्र:
- वर्तमान प्रणाली को खनन क्षेत्र में श्रमिकों का उपयोग करने और कम मुआवज़े के साथ उसे सक्षम श्रमिकों के साथ स्थापित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
OSHWC संहिता में खामियाँ:
- संहिता खदान मालिक पर खदान में वैकल्पिक रोज़गार और किसी भी प्रकार के पुनर्वास या चिकित्सकीय रूप से अनुपयुक्त पाए गए कर्मचारी के लिये विकलांगता भत्ता/एकमुश्त मुआवज़े के भुगतान का कोई दायित्व नहीं डालती है।
फंड का कम उपयोग:
- जिला खनिज फाउंडेशन ट्रस्ट (DMFT) के फंड का कम उपयोग किया जाता है और पूरी तरह से तदर्थ तरीके से व्यय किया जाता है।
आगे की राह
राजस्थान मॉडल:
- राजस्थान देश में खनिज उत्पादन में 17% से अधिक का योगदान देता है जो शीर्ष भागीदारों में से एक है और नागरिक समाज की सक्रियता का इसका एक लंबा इतिहास है।
- इसे संज्ञान में लेते हुए राजस्थान वर्ष 2015 में सिलिकोसिस को ‘महामारी’ के रूप में अधिसूचित करने वाला पहला राज्य बन गया।
- इसके अलावा 2019 में इसने एक औपचारिक न्यूमोकोनियोसिस नीति की घोषणा की, जो अब तक केवल हरियाणा द्वारा लागू की गई थी।
- यह मॉडल अन्य खनिज उत्पादक राज्यों द्वारा भी लागू किया जा सकता है।
OSHWC का उचित कार्यान्वयन:
- OSHWC संहिता के तहत राज्य द्वारा नियमों में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि प्रतिष्ठानों में सभी श्रमिकों की स्वास्थ्य जाँच की जाए, चाहे उनकी उम्र कुछ भी हो।
स्थानीय उत्पादकों को प्रोत्साहित करना:
- स्थानीय उत्पादकों को कम लागत वाली धूल-दमनकारी और वेट-ड्रिलिंग तंत्र विकसित करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, जिसके लिये या तो सब्सिडी दी जा सकती है या यह खान मालिकों को मुफ्त प्रदान किया जा सकता है।
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