राजनीति का अपराधीकरण

राजनीति का अपराधीकरण

 

  • उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले, राजनीतिक दलों द्वारा आपराधिक पृष्ठभूमि रखने वाले, किंतु अपने क्षेत्रों में प्रभावशाली, लोगों के साथ गठबंधन करने पर पुनर्विचार किया जा रहा है।

पृष्ठभूमि:

  • सुप्रीम कोर्ट द्वारा राजनीती में अपराधियों के प्रवेश के बारे में संसद को पहले भी चेतावनी दी चुकी है। पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवारों के आपराधिक अतीत को मतदाताओं से छिपाने के लिए शीर्ष अदालत ने पिछले साल प्रमुख राजनीतिक दलों पर जुर्माना भी लगाया था।

शीर्ष अदालत द्वारा फरवरी 2020 में जारी निर्देश:

  • सुप्रीम कोर्ट ने सभी राजनीतिक दलों को, उनके द्वारा अपने चुनावी उम्मीदवारों का चयन करने के 48 घंटों के भीतर अपनी वेबसाइट के होमपेज पर ‘आपराधिक इतिहास वाले उम्मीदवार’ शीर्षक के तहत आपराधिक इतिहास, यदि कोई हो, को प्रकाशित करने का निर्देश दिया था।

चिंता का विषय:

  • देशभर में विधि-निर्माताओं के खिलाफ कुल 4,442 मामले लंबित हैं। इसमें से मौजूदा सांसदों और राज्य विधानसभा सदस्यों के खिलाफ मामलों की संख्या 2,556 है।
  • इनमे से अधिकाँश मामले, राजनेताओं के खिलाफ आपराधिक मामलों की सुनवाई हेतु विशेष रूप से गठित विभिन्न विशेष अदालतों में लंबित थे।
  • विधि-निर्माताओं के खिलाफ दर्ज मामलों में, भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान, मानहानि और धोखाधड़ी के मामले शामिल हैं।
  • अधिकाँश मामले, जानबूझकर अवज्ञा करने और लोक सेवकों द्वारा जारी आदेशों में बाधा डालने के लिए आईपीसी की धारा 188 के उल्लंघन से संबंधित है।
  • अपराधों के संबंध में 413 मामलों में ‘आजीवन कारावास’ का दंड देने का प्रावधान है, जिनमें से 174 मामलों में मौजूदा सांसद/विधायक आरोपी हैं।
  • कई मामले, दर्ज किए जाने के शुरुआती स्तर पर ही लंबित है, और यहां तक ​​कि अदालतों द्वारा जारी गैर-जमानती वारंट (non-bailable warrants – NBW) भी निष्पादित नहीं किए गए हैं।
  • विधि-निर्माताओं के खिलाफ सबसे अधिक मामले उत्तर प्रदेश में लंबित हैं।

 इस विषय पर जन प्रतिनिधित्व अधिनियम’ (RPA) के प्रावधान:

  • वर्तमान में, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People- RPA) 1951 के तहत, किसी आपराधिक मामले में सजा-युक्त होने के पश्चात चुनाव नहीं लड़ सकते हैं।
  • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 के अंतर्गत, किसी भी आपराधिक मामले में दो अथवा दो से अधिक वर्षो के सजायाफ्ता व्यक्ति को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया गया है। परन्तु, जिन व्यक्तियों का मामला अदालत में विचारधीन है, वे चुनाव में भाग ले सकते हैं।

राजनीति में अपराधीकरण के मुख्य कारण:

  • भ्रष्टाचार
  • वोट बैंक
  • शासन में कमियां

आगे की राह:

  • राजनीतिक दलों को स्वयं ही दागी व्यक्तियों को टिकट देने से मना कर देना चाहिए।
  • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन करके, उन व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर देना चाहिए जिनके खिलाफ जघन्य प्रकृति के मामले लंबित हैं।
  • फास्ट-ट्रैक अदालतों को दागी नीति-निर्माताओं से संबंधित मामलों को शीघ्रता से निपटाना चाहिए।
  • चुनाव अभियानों के वित्तपोषण में अधिक पारदर्शिता लाई जाए।
  • भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) को में राजनीतिक दलों के वित्तीय खातों के ऑडिट की शक्ति प्रदान की जानी चाहिए।
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