सदन के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का निर्वाचन

सदन के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का निर्वाचन

 

  • हाल ही में, हरदोई से विधायक नितिन अग्रवाल को उत्तर प्रदेश विधानसभा का उपाध्यक्ष (Deputy Speaker) का चुना गया है। विदित हो कि, उत्तर प्रदेश में वर्तमान विधानसभा के कार्यकाल में मुश्किल से पांच महीने बचे हैं।

सदन के अध्यक्ष एव उपाध्यक्ष पद हेतु निर्वाचन प्रक्रिया:

  • संविधान के अनुच्छेद 93 में लोकसभा और अनुच्छेद 178 में राज्य विधानसभाओं के संदर्भ में किए गए प्रावधानों के अनुसार, “सदन, यथाशीघ्र अपने दो सदस्यों को अपने अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में चुनेंगे।
  • लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में, अध्यक्ष (Speaker) का चुनाव करने हेतु राष्ट्रपति / राज्यपाल द्वारा एक तिथि निर्धारित की जाती है, इसके पश्चात निर्वाचित अध्यक्ष, उपाध्यक्ष का चुनाव करने हेतु तारीख तय करता है।
  • संबंधित सदनों के सांसद / विधायक, इन पदों पर सदन के सदस्यों में से किसी एक का निर्वाचन करने हेतु मतदान करते हैं।

क्या संविधान के अनुसार सदन में ‘डिप्टी स्पीकर’ का होना अनिवार्य है?

  • संवैधानिक विशेषज्ञों के अनुसार, अनुच्छेद 93 और अनुच्छेद 178 दोनों में “होगा” (Shall) तथा “जितनी जल्दी हो सके” (as soon as may be) शब्दों का उपयोग किया गया है, जोकि यह दर्शाता है कि अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव न केवल अनिवार्य है, बल्कि इसे जल्द से जल्द कराया जाना चाहिए।

सदन के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष की भूमिकाएं और कार्य:

  • अध्यक्ष, “सदन का प्रमुख प्रवक्ता होता है, और सदन का सामूहिक रूप से प्रतिनिधित्व करता है। वह शेष विश्व के लिए सदन का एकमात्र प्रतिनिधि होता है”।
  • अध्यक्ष, सदन की कार्यवाही और संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठकों की अध्यक्षता करता है।
  • अध्यक्ष, किसी विधेयक के, ‘धन विधेयक’ होने अथवा न होने संबंधी और इसके ‘धन विधेयक’ होने पर दूसरे सदन के अधिकार-क्षेत्र से बाहर होने संबंधी निर्णय करता है।
  • आमतौर पर, अध्यक्ष को सत्ताधारी दल से चुना जाता है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों के दौरान, लोकसभा उपाध्यक्ष के मामले में यह स्थिति भिन्न रही है।
  • संविधान में ‘लोकसभा अध्यक्ष’ की स्वतंत्रता व निष्पक्षता सुनिश्चित करने हेतु, इसका वेतन ‘भारत की संचित निधि’ पर भारित किया गया है, और इस पर संसद में चर्चा नहीं की जा सकती है।
  • किसी विधेयक पर बहस या सामान्य चर्चा के दौरान संसद सदस्यों द्वारा केवल ‘अध्यक्ष’ को ही संबोधित किया जाता है।

कार्यकाल एवं पदत्याग:

  • अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष, एक बार निर्वाचित होने के बाद सदन के जीवनपर्यंत पद पर बने रहते हैं
  • अनुच्छेद 94 (राज्य विधानसभाओं के लिए अनुच्छेद 179) के तहत, ये निम्नलिखित तीन स्थितियों द्वारा अपना पद त्याग सकते है:
  1. उनके सदन के सदस्य न रहने पर;
  2. अध्यक्ष या उपाध्यक्ष परस्पर एक दूसरे को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित त्यागपत्र द्वारा;
  3. सदन के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा पद से हटाये जाने पर। किंतु, इस प्रस्ताव को पारित करने से पूर्व उसे 14 दिन पहले सूचना देना अनिवार्य होता है।

 डिप्टी स्पीकर की शक्तियां:

  • सदन की बैठक की अध्यक्षता करते समय ‘उपाध्यक्ष’ के पास ‘अध्यक्ष’ के समान शक्तियां होती हैं। सदन के अध्यक्षता करने दौरान ‘कार्य-प्रक्रिया नियमों’ में ‘अध्यक्ष’ के सभी संदर्भों को ‘उपाध्यक्ष’ के ‘अध्यक्ष’ के रूप में माना जाता है।

चुनाव कराने हेतु समय-सीमा निर्दिष्ट करने वाले राज्य:

  • संविधान में ‘सदन के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष’ हेतु चुनावों के लिए कोई प्रक्रिया या समय सीमा निर्धारित नहीं की गयी है। इन पदों पर चुनाव आयोजित करने संबंधी निर्णय लेने का दायित्व विधायिकाओं पर छोड़ दिया गया है।
  • उदाहरण के लिए, हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों में ‘अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष’ पदों के निर्वाचन हेतु एक समय-सीमा निर्दिष्ट की गयी है।

हरियाणा:

  1. हरियाणा में विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव, आम चुनावसंपन्न के पश्चात शीघ्रातिशीघ्र किया जाता है। और फिर, इसके सात दिनों के भीतर उपाध्यक्ष का चुनाव किया जाता है।
  2. निर्धारित नियमों के अनुसार, इन पदों में से कोई पद रिक्त होने पर, विधायिका के अगले सत्र में पहले सात दिनों के भीतर इसके लिए चुनाव किया जाना चाहिए।

उत्तर प्रदेश:

  1. विधानसभा की अवधि के दौरान यदि किसी कारणवश ‘अध्यक्ष’ का पद रिक्त हो जाता है, तो इस पद के हेतु, पद-रिक्त होने की तिथि से 15 दिन के भीतर चुनाव करने हेतु समय सीमा निर्धारित की गई है।
  2. ‘उपाध्यक्ष’ पद के मामले में, पहली बार चुनाव की तारीख ‘अध्यक्ष’ द्वारा तय की जाती है, और इसके बाद में हुई की रिक्तियों को भरने हेतु चुनाव के लिए 30 दिन का समय दिया जाता है।
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